कल की बारिश से
निखर गया धरती का यौवन...
डोल गया पेडों का मन
मचल गए पंछी सारे
निखर गया धरती का यौवन...
एक एक पत्ता पत्ता
एक एक डाली डाली
डाल रहे इक दूजे की पाती
निखर गया धरती का यौवन...
मेंढक भी टर्राए अब तो
चींटियां भी आई निकल कर
पंछी भी कर रहे मृदंग अब तो
निखर गया धरती का यौवन...
7 comments:
मोहन जी
आप सही कह रहे हैं। भीषण गर्मी के बाद यह वर्षा बहुत लुभावनी लग रही है।
sundar chitra..achchhi kvita!! jari rakhen
राहत देती बारिश पर आपका भाव- पूर्ण सार्थक रचना आनंद की सीमा को और बढ़ा गया…।
बहुत बढ़िया.
उम्दा रचना, बधाई.
bahut khuub surat aur saath ka chitra bhi..
aap sabhi ka dhanywad
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