Wednesday, 21 May 2008

निखर गया धरती का यौवन...



कल की बारिश से
निखर गया धरती का यौवन...
डोल गया पेडों का मन
मचल गए पंछी सारे
निखर गया धरती का यौवन...
एक एक पत्‍ता पत्‍ता
एक एक डाली डाली
डाल रहे इक दूजे की पाती
निखर गया धरती का यौवन...
मेंढक भी टर्राए अब तो
चींटियां भी आई निकल कर
पंछी भी कर रहे मृदंग अब तो
निखर गया धरती का यौवन...

7 comments:

शोभा said...

मोहन जी
आप सही कह रहे हैं। भीषण गर्मी के बाद यह वर्षा बहुत लुभावनी लग रही है।

L.Goswami said...

sundar chitra..achchhi kvita!! jari rakhen

Divine India said...

राहत देती बारिश पर आपका भाव- पूर्ण सार्थक रचना आनंद की सीमा को और बढ़ा गया…।

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया.

Udan Tashtari said...

उम्दा रचना, बधाई.

Alpana Verma said...

bahut khuub surat aur saath ka chitra bhi..

मोहन वशिष्‍ठ said...

aap sabhi ka dhanywad