मैं उन सुरम्य घाटियों से गुजर रही हूं
जहां चट्टानें भाषा जानती हैं
ठंड महसूस करती हैं
सिरहन में इनके भी काँपते हैं हौंठ
हरी काली कहीं
कहीं बदरंग भूरी
रंगों के प्रति सजग फिर भी
जिस्म की ठोस इच्छाओं से बिंधी
प्रकृति की हर आवाज को सुनती हैं ये चट़टानें
एक शब्द बचाती हैं अपने भीतर
सारे आत्मीय स्पर्श
लौटाने के लिए हमें
मैं उन सुरम्य घाटियों से गुजर रहीं हूँ
एक झरना जहाँ बह रहा है
एक लाल चिड़िया जहाँ मेरा इंतजार कर रही है
-सविता सिंह
1 comment:
मैं उन सुरम्य घाटियों से गुजर रही हूं
जहां चट्टानें भाषा जानती हैं
ठंड महसूस करती हैं
सिरहन में इनके भी काँपते हैं हौंठ
" a nice composition, truley said chhtaney bhee boltee hain"
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