Thursday, 15 May 2008

और कविता खत्‍म हो गई

एक बच्‍चा घर की मुंडेर पर
हाथ में खाने की चीज लिए हुए
अपनी मां के साथ
कभी चीज को निहारता
कभी खाता
और
खाता ही जाता
लेकिन
खाते-खाते सोचता
कि
कम-कम खाऊं
ताकि
जल्‍दी खत्‍म न हो
यदि कोई मांगे तो
दूर से ही दिखाना
और
जल्‍दी से अपना हाथ पीछे खींच लेता
अपनी चीज किसी को नहीं देता
ये ही तो उस बच्‍चे का बचपन है
यही तो उस बच्‍चे
का जीवन है
लेकिन ये क्‍या
कविता खत्‍म हो गई
और बच्‍चे की चीज
हाथ में अभी भी
बाकी है

2 comments:

शायदा said...

वाह मोहन, बढि़या लिख रहे हो।

Alpana Verma said...

kavita kahan khtam hoti hai???

achcha likha hai.