एक बच्चा घर की मुंडेर पर
हाथ में खाने की चीज लिए हुए
अपनी मां के साथ
कभी चीज को निहारता
कभी खाता
और
खाता ही जाता
लेकिन
खाते-खाते सोचता
कि
कम-कम खाऊं
ताकि
जल्दी खत्म न हो
यदि कोई मांगे तो
दूर से ही दिखाना
और
जल्दी से अपना हाथ पीछे खींच लेता
अपनी चीज किसी को नहीं देता
ये ही तो उस बच्चे का बचपन है
यही तो उस बच्चे
का जीवन है
लेकिन ये क्या
कविता खत्म हो गई
और बच्चे की चीज
हाथ में अभी भी
बाकी है
2 comments:
वाह मोहन, बढि़या लिख रहे हो।
kavita kahan khtam hoti hai???
achcha likha hai.
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