घर से निकला, सडक पर पहुंचा
और देखा तो हैरान हो गया
सडक किनारे एक चवन्नी पडी थी
पुरानी सी मैली सी गंदी सी
पडी पडी कराह रही थी
लोगों की राहें ताक रही थी
और सोच रही थी कि
शायद
कोई आए और उसे उठाए
फिर अपने माथे से छुआए
लेकिन वाह री उसकी किस्मत
जिस चवन्नी का कभी सिक्का चलता था
फिर अपने माथे से छुआए
लेकिन वाह री उसकी किस्मत
जिस चवन्नी का कभी सिक्का चलता था
जिसके लिए लोग तरसते थे
आज वही चवन्नी
पडी पडी लोगों के लिए तरस रही है
अपनी किस्मत को कोस रही है
और सोच रही है कि
शायद
कोई आए और उठाए
फिर अपने माथे से छुआए
2 comments:
सही कहा आपने.. इंसान बहुत स्वार्थी होता है.. स्वार्थ ख़त्म तो साथ ख़त्म.. बहुत बढ़िया रचना.. बधाई
आज वही चवन्नी
पडी पडी लोगों के लिए तरस रही है
अपनी किस्मत को कोस रही है
और सोच रही है कि
शायद
कोई आए और उठाए
फिर अपने माथे से छुआए
" oh what a pity on the coin, very painful,kash........... insaan uskee value smej paye"
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