मैंने सुना है संगीत
एक बच्चे से
जिसके हाथ में है इकतारा
वो गा रहा है
मां हुंदी ऐ मां ओ दुनिया वालियों
मैंने सुना है संगीत
उसके फटे हुए कपडों से
जिसमें से गा रहा है उसका बदन
मैंने सुना है संगीत
रेल के ठंडे फर्श पर रखे उसके नंगे पांव से
मैंने सुना है संगीत
ठंड से नीले पड गए उसके होंटों से
मैंने सुना है संगीत
उसकी आंखों से
जो लोगों के हाथ में तलाश रहीं हैं एक रूपया
यह संगीत मुझे उदास कर देता है
-विजय मौदगिल
2 comments:
good hai..apke kavita mein vo battien hai jo sachaye ko byan karte hai yane sahe mein ab panchion ke awaz sunne ko nai milte... insaan matlab prasth hi gya hai.. parents ke respect khatam hote ja rahe hai... gud keep it up-
bahut hi achchee rchna hai--badhayee
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