Saturday, 21 June 2008

अब ना मैं उदास होता ...

जब मैं उदास होता
आईने के सामने जाकर
खडा हो जाता
और
ढूंढता उस उदासी को
जो मुझे उदास करती
देखता आईने की आंखों से
और पाता कि
उदासी तो मेरी आंखों
में ही थी और
मैं फिर से
उदास हो जाता
क्‍योंकि मैं तो
उदास था ही
मेरे साथ मेरे आईने
की आंखें भी
मेरी आंखों की
उदासी देख
और ज्‍यादा उदास हो गई
अब ना मैं उदास होता हूं
और ना
आईने के सामने जाकर
खडा होता हूं
और अपने आईने को भी
उदास नहीं करता हूं

4 comments:

रंजू भाटिया said...

अपने ही अक्स की बात सुंदर एहसास है यह भी

Anonymous said...

bhut hi sundar rachana.likhate rhe.

Alpana Verma said...

udaasi se udaasi tak ka safar! rochak hai--khud se baaten karne ka yehi bhi andaz hai--bahut khuub!

seema gupta said...

और ज्‍यादा उदास हो गई
अब ना मैं उदास होता हूं
और ना
आईने के सामने जाकर
खडा होता हूं
और अपने आईने को भी
उदास नहीं करता हूं

"beautiful sentiment"