Friday, 27 June 2008

खून पसीना सियाही

मजदूर इंटें पत्‍थर उठा रहे
मिस्‍त्री चिनाई कर रहे
मेरा सियाही की कमाई से
मकान बन रहा धीरे धीरे
साथ साथ मैं भी बन रहा
बनता मकान बंदे को
नया जहान देता
बनता मकान नया ज्ञान देता
सियाही की कमाई से बनते मकान ने मुझे बताया
कि किराए के मकान की दीवार में
मेरे कील ठोंकने पर
मकान मालिक की छाती क्‍यों फटती थी
उसका मकान पसीने की कमाई का
मेरे बच्‍चे को मामूली चोट लगने पर
पत्‍नी की आंखों में
छमछम आंसू बहते
मैं खीझता
मैं खीझता तो मुझे समझाता
यह सियाही की कमाई से बनता मकान
कि भले मनुष्‍य खीझ मत
बच्‍चे मांओं के खून की कमाई से बने हैं
मेरा मकान बनता धीरे धीरे
बनता मकान बहुत ज्ञान देता
-जसवंत जफर

1 comment:

seema gupta said...

मेरे बच्‍चे को मामूली चोट लगने पर
पत्‍नी की आंखों में
छमछम आंसू बहते
मैं खीझता

" ya very near to life" very well written

Regards