मजदूर इंटें पत्थर उठा रहे
मिस्त्री चिनाई कर रहे
मेरा सियाही की कमाई से
मकान बन रहा धीरे धीरे
साथ साथ मैं भी बन रहा
बनता मकान बंदे को
नया जहान देता
बनता मकान नया ज्ञान देता
सियाही की कमाई से बनते मकान ने मुझे बताया
कि किराए के मकान की दीवार में
मेरे कील ठोंकने पर
मकान मालिक की छाती क्यों फटती थी
उसका मकान पसीने की कमाई का
मेरे बच्चे को मामूली चोट लगने पर
पत्नी की आंखों में
छमछम आंसू बहते
मैं खीझता
मैं खीझता तो मुझे समझाता
यह सियाही की कमाई से बनता मकान
कि भले मनुष्य खीझ मत
बच्चे मांओं के खून की कमाई से बने हैं
मेरा मकान बनता धीरे धीरे
बनता मकान बहुत ज्ञान देता
-जसवंत जफर
1 comment:
मेरे बच्चे को मामूली चोट लगने पर
पत्नी की आंखों में
छमछम आंसू बहते
मैं खीझता
" ya very near to life" very well written
Regards
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