काश मैं भी परी होती...
काश मैं भी परी होती
होते सुंदर पर मेरे भी
लेती थाह सागर की क्षण में
करती सैर गगन की मैं भी
काश मैं भी परी होती
होते सुंदर पर मेरे भी
सुनते हैं सुंदर है देश परी का
होती मैं भी खुश देख देश परी का
जादुई छडी होती हाथ मेरे भी
करती मैं भी दूर गरीबी
नहीं देखती लोगों को भूखों मरते
काश मेरे भी पर होते
नंगे पैर...
नंगे पैर
चिथडे तन पर
बिछौना धरा का
ओढना है अंबर
खुश होने को मजबूर हूँ...
सोचता हूं लिखने की
आता नहीं है लिखना
आदत से मजबूर हूं
पढता हूं कमेंट आपके
खुश होने को मजबूर हूं
6 comments:
very well achcha likhte ho jari rakho good
rakesh kranti
आज पहली बार आपका ब्लोंग पढ़ा...अच्छा लगा पढ़कर! खासकर आपने अपने बेटे पर जो कवितायें लिखी हैं मन को छू गयीं....
अब कमेंट पढ़ कर मजबूरीवश खुश हो जाईये. जब इतना बेहतरीन लिखेंगे तो यह मजबूरी तो आयेगी ही. शुभकामनाऐं.
आप सबका तहेदिली शुक्रिया और आशा करूंगा कि आप ही सिखाओगे मुझे कि कैसे लिखना चाहिए क्योंकि लिखना सीखने की कोशिश मात्र कर रहा हूं एक बार फिर से आप सबका शुक्रिया
good evening shrimaan, aapne to blog par kmaal kr rkha hai.geet ji k sath rehkar hamare mohan babu k to kya kahne....subhanallah!
bahut sundar khshnikayen hain--bahut hi achchee--kaise kahte hain ki aap ko likhna nahin aata--yehi to hai likhna!!!:)
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