Saturday, 21 June 2008

बेदर्द


मैंने निचोड़कर दर्द
मन को
मानो सूखने के ख्याल से
रस्सी पर डाल दिया है

और मन
सूख रहा है

बचा-खुचा दर्द
जब उड़ जायेगा
तब फिर
पहन लूँगा मैं उसे

माँग जो रहा है मेरा
बेवकूफ तन
बिना दर्द का मन !

-भवानीप्रसाद मिश्र

1 comment:

Alpana Verma said...

mishr ji ki kavita mein ek sachchayee hai--lekin dard ke bina to 'bedard' ho jayega dil!