कई दिन से सोच रहा था कि मैं भी कुछ लिखूं लेकिन नाकामयाब रहा। कुछ समझ में नहीं आया। अनायास बैठे-बैठे पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की लिखी कविता की दो लाईन मेरे जहन में आई तो मैंने सोचा क्यों ना इन्हें ही आपके सामने प्रस्तुत करूं। यह मेरी एक कोशिश है कृप्या अपने विचार देकर कृतार्थ जरूर करें। आप श्री वाजपेयी जी की जीवनी यहां पर पढ सकते हैं।
तो आपके सामने पेश है उनकी लिखी एक कविता
बाधाएं आती हैं आएं,
घिरें प्रलय की ओर घटाएं,
पांवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
हास्य रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्य बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीडाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावन बनकर ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
अंत की चार लाईनों में कवि ने जीवन के बारे में क्या कुछ कह दिया है
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
2 comments:
बहुत आभार अटल जी की कविता प्रस्तुत करने का.
atal ji mujhe behad priy hain--unka vyaktitav chumbkiy hai--dhnywaad un ki kavita aur jeevani se parichay karaane ke liye-
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