Tuesday, 27 May 2008

माता लक्ष्‍मी जी की अनोखी कहानी
एक दिन भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर भ्रमण करने और वहाँ पर रहने वाले लोगों को देखने की इच्छा माता लक्ष्मी को बतायी । तो माता लक्ष्मी ने कहा कि हे प्रभु मैं भी आपके साथ चल सकती हूँ क्या । तब विष्णु भगवान ने एक मिनट सोचा और कहा कि ठीक है चलो परन्तु एक शर्त है । तुम उत्तर दिशा की तरफ नहीं देखोगी ।माता लक्ष्मी ने अपनी सहमति दे दी और वे शीघ्र ही पृथ्वी पर भ्रमण के लिये निकल गये । पृथ्वी बहुत ही सुन्दर दिख रही थी और वहाँ पर बहुत ही शान्ति थी । देखते ही माता लक्ष्मी बहुत ही खुश हुई और भूल गयी कि भगवान विष्णु ने उनसे क्या कहा था । वह उत्तर दिशा में देखने लगी । तभी उन्हें बहुत ही खुबसूरत फूलों का एक बगीचा दिखा जहाँ पर बहुत ही सुन्दर खुशबू आ रही थी । वह एक छोटा सा फूलों का खेत था । माता लक्ष्मी बिना सोचे ही उस खेत पर उतरी और वहाँ से एक फूल तोड़ लिये । भगवान विष्णु ने जब यह देखा तो उन्होंने माता लक्ष्मी को अपनी भूल याद दिलायी । और कहा कि किसी से बिना पूछे कुछ भी नहीं लेना चाहिये । इस पर भगवान विष्णु के आँसू आ गये ! माता लक्ष्मी ने अपनी भूल स्वीकार की और भगवान विष्णु से माफी माँगी । तब भगवान विष्णु बोले कि तुमने जो भूल की है उसके लिये तुम्हें सजा भी भुगतनी पड़ेगी । तुम जिस फूल को बिना उसके माली से पूछे लिया है अब तुम उसी के घर में 3 साल के लिये नौकरानी बनकर उसकी देखभाल करोगी । तभी मैं तुम्हें बैकुण्ड में वापिस बुलाऊंगा ।माता लक्ष्मी एक औरत का रुप लिया और उस खेत के मालिक के पास गयी । मालिक का नाम माधवा था । वह एक गरीब तथा बड़े परिवार का मुखिया था । उसके साथ उसकी पत्नी, दो बेटे और तीन बेटियां एक छोटी सी झोपड़ी में रहती थी । उनके पास सम्पत्ति के नाम पर सिर्फ वही एक छोटा सा भूमि का टुकड़ा था । वे उसी से ही अपना गुजर बसर करता था । माता लक्ष्मी उसके घर में गयी तो माधवा ने उन्हें देखा और पूछा कि वह कौन है । तब माता लक्ष्मी ने कहा कि मेरी देखभाल करने वाला कोई नहीं है मुझ पर दया करो और मुझे अपने यहाँ रहने दो मैं आपका सारा काम करुँगी । माधव एक दयालु हृदय का इनसान था लेकिन वह गरीब भी था, और वह जो कमाता था उसमें तो बहुत ही मुश्किल से उसी के घर का खर्चा चलता था परन्तु फिर भी उसने सोचा कि यदि मेरे तीन की जगह चार बेटियाँ होती तब भी तो वह यहाँ रहती यह सोचकर उसने माता लक्ष्मी को अपने यहाँ शरण दे दी । और इस तरह माता लक्ष्मी तीन साल तक उसके यहाँ नौकरानी बनकर रही । जैसे ही माता लक्ष्मी उसके यहाँ आयी तो उसने एक गाय खरीद ली और उसकी कमाई भी बढ़ गयी अब तो उसने कुछ जमीन और जेवर भी खरीद लिये थे और इस तरह उसने अपने लिये एक घर और अच्छे कपड़े खरीदे । तथा अब हर किसी के लिये एक अलग से कमरा भी था ।इतना सब मिलने पर माधव ने सोचा कि यह सब कुछ मुझे इसी औरत (माता लक्ष्मी) के घर में प्रवेश करने के बाद मिला है वही हमारे भाग्य को बदलने वाली है । 2.5 साल निकलने के बाद माता लक्ष्मी ने उस घर में प्रवेश किया और उनके साथ एक परिवार के सदस्य की तरह रही परन्तु उन्होंने खेत पर काम करना बन्द नहीं किया । उन्होनें कहा कि मुझे अभी अपने 6 महीने और पूरे करने है । जब माता लक्ष्मी ने अपने 3 साल पूरे कर लिये तो एक दिन की बात है कि माधव अपना काम खत्म करके बैलगाड़ी पर अपने घर लौटा तो अपने दरवाजे पर अच्छे रत्न जड़ित पोशाक पहने तथा अनमोल जेवरों से लदी हुई एक खुबसूरत औरत को देखा । और उसने कहा कि वह कोई और नहीं माता लक्ष्मी है ।तब माधव और उसके घर वाले आश्चर्य चकित ही रह गये कि जो स्त्री हमारे साथ रह रही थी वह कोई और नहीं माता लक्ष्मी स्वयं थी । इस पर उन सभी के नेत्रों से आँसू की धारा बहने लगी और माधवा बोला कि यह क्या माँ हमसे इतना बड़ा अपराध कैसे हो गया । हमने स्वयं माता लक्ष्मी से ही काम करवाया ।माता हमें माफ कर देना । तब माधव बोला कि हे माता हम पर दया करो । हममे से कोई भी नहीं जानता था कि आप माता लक्ष्मी है । हे माता हमें वरदान दीजिये । हमारी रक्षा करिये ।तब माता लक्ष्मी मुस्कुरायी और बोली कि हे माधव तुम किसी प3कार की चिन्ता मत करो तुम एक बहुत ही दयालु इनसान हो और तुमने मुझे अपने यहाँ आसरा दिया है उन तीन सालों की मुझे याद है मैं तुम लोगों के साथ एक परिवार की तरह रही हूँ । इसके बदले में मैं तुम्हें वरदान देती हूँ कि तुम्हारे पास कभी भी धन की और खुशियों की कमी नहीं होगी । तुम्हें वो सारे सुख मिलेंगे जिसके तुम हकदार हो ।यह कहकर लक्ष्मी जी अपने सोने से बने हुये रथ पर सवार होकर बैकुण्ठ लोक चली गयी ।यहाँ पर माता लक्ष्मी ने कहा कि जो लोग दयालु, और सच्चे हृदय वाले होते है मैं हमेशा वहाँ निवास करती हूँ । हमें गरीबों की सेवा करनी चाहिये । इस कहानी का यह उपदेश है कि जब छोटी सी गलती पर भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को भी सजा दी तो हम तो बहुत ही मामूली इनसान है । फिर भी भगवान की हमेशा हम पर कृपा बनी रहती है । हर किसी इनसान को दूसरे इनसान के प्रति दयालुता का भाव रखना चाहिये हमें जो भी कष्ट और सुख मिल रहे है वह हमारे पुराने जन्मों के कर्म है ।अतः अन्त में यही कहना चाहूंगा कि हर किसी को भगवान पर श्रद्घा और सबुरी रखनी चाहिये अन्त में वही हमारी नैया पार लगाते है ।

Thursday, 22 May 2008

चट़टानें

मैं उन सुरम्य घाटियों से गुजर रही हूं

जहां चट्टानें भाषा जानती हैं

ठंड महसूस करती हैं

सिरहन में इनके भी काँपते हैं हौंठ

हरी काली कहीं

कहीं बदरंग भूरी

रंगों के प्रति सजग फिर भी

जिस्म की ठोस इच्छाओं से बिंधी

प्रकृति की हर आवाज को सुनती हैं ये चट़टानें

एक शब्द बचाती हैं अपने भीतर

सारे आत्मीय स्‍पर्श

लौटाने के लिए हमें

मैं उन सुरम्य घाटियों से गुजर रहीं हूँ

एक झरना जहाँ बह रहा है

एक लाल चिड़िया जहाँ मेरा इंतजार कर रही है

-सविता सिंह

चवन्‍नी की किस्‍मत


घर से निकला, सडक पर पहुंचा
और देखा तो हैरान हो गया
सडक किनारे एक चवन्‍नी पडी थी
पुरानी सी मैली सी गंदी सी
पडी पडी कराह रही थी
लोगों की राहें ताक रही थी
और सोच रही थी कि
शायद
कोई आए और उसे उठाए
फिर अपने माथे से छुआए
लेकिन वाह री उसकी किस्‍मत
जिस चवन्‍नी का कभी सिक्‍का चलता था
जिसके लिए लोग तरसते थे
आज वही चवन्‍नी
पडी पडी लोगों के लिए तरस रही है
अपनी किस्‍मत को कोस रही है
और सोच रही है कि
शायद
कोई आए और उठाए
फिर अपने माथे से छुआए

Wednesday, 21 May 2008

निखर गया धरती का यौवन...



कल की बारिश से
निखर गया धरती का यौवन...
डोल गया पेडों का मन
मचल गए पंछी सारे
निखर गया धरती का यौवन...
एक एक पत्‍ता पत्‍ता
एक एक डाली डाली
डाल रहे इक दूजे की पाती
निखर गया धरती का यौवन...
मेंढक भी टर्राए अब तो
चींटियां भी आई निकल कर
पंछी भी कर रहे मृदंग अब तो
निखर गया धरती का यौवन...

Tuesday, 20 May 2008

बारिश

आज बारिश गिर रही है
रह रहकर गिर रही है
बादलों के बीच से आज बिजली गरज रही है
और कह रही है
ना रोको बारिश को, ना टोको बारिश को
कितने यौवन से प्‍यासी थी धरा
कितने अरसे से प्‍यासे थे तरूवर
कितने दिनों से सूखी थी बयार
मिटाने दो प्‍यास सभी की
ना रोको बारिश को, ना टोको बारिश को
मयूर आज नाचेगा जी भर
मयूर आज गाएगा जी भर
कभी डाल-डाल कभी पात-पात
उछल कूद मचाएगा वानर
मिटाने दो प्‍यास सभी की
ना रोको इस बारिश को, ना टोको इस बारिश को
आज बारिश गिर रही है
रह रहकर गिर रही है
बादलों के बीच से आज बिजली गरज रही है
और कह रही है
ना रोको बारिश को, ना टोको बारिश को

Sunday, 18 May 2008

चिडियों ने घर नहीं बनाया

एक दीवार बनाई
दूसरी दीवार बनाई
तीसरी फिर चौथी दीवार बनाई
छत डाल दी लेकिन
फिर भी अधूरा रह गया घर
चिडिया ने घोंसला नहीं बनाया
शीशे लगाए, खिडकी दरवाजे लगाए
मार्बल भी डलवाया
फिर भी अधूरा रह गया घर
चिटियों ने जगह नहीं बनाई

Friday, 16 May 2008

नई कमीज

मैं नई कमीज पहन
तुम्‍हें खत लिख रहा हूं
किस तरह महसूस कर रही है
वह मेरे शरीर से बातें करती
अभी थोडी देर पहले
पसीने से मिली थी
अभी थोडी देर बाद
धूल को मिलेगी
कैसा लगेगा उसे
साबुन से मिलना
मेरी पत्‍नी के हाथों धोए जाना
नई कमीज चमकती धूप में
तार पर लटकती
सूखती, क्‍या सोचेगी
मैं तुम्‍हें खत लिख रहा हूं
नई कमीज पहन कर।
-गुरप्रीत

कलयुगी बेटा

एक खबर पढी
बेटे ने मां की जान ली
दुख हुआ कलेजा मुहं को आया
हे कलयुगी बेटे जिस मां ने तुझे
अपना खून देकर, अपनी जिंदगी देकर
नया जीवन दिया आज तूने ही
उसके खून से अपने हाथों को रंग लिया
लेकिन हे मां ये नादान था
पागल था
जो समझ ना सका तुझको
लेकिन तू तो मां है ना
मां अपने बेटे को माफ करती है
बेटे को खुश रहो का आर्शिवाद देती है
लेकिन
अब डर लग रहा है मां
जब और मांओं को पता लगेगा
उसका बेटा बडा होकर
उसी का कातिल बनेगा
तो कहीं ऐसा तो नहीं
कि हे मां तू बेटों को जन्‍म
देना ही छोड दे
और इसका खामियाजा
पूरी दुनिया भुगते

दर्पण

दर्पण एक सच्‍चा दोस्‍त
जो बताता है मेरी
सच्‍चाई को
मेरी बुराई को
और मैं उससे
करता हूं अपने
दिल के हर
दुख दर्द को सांझा
क्‍योंकि एक वो ही तो है
जो ना मेरे दुखों पर मेरा
मजाक बनाता है
और मेरे खुश होने पर
बहुत खुश होता है

उदासी


जब मैं उदास होता हूं
आईने के सामने जाकर
खडा हो जाता हूं
और
ढूंढता हूं उस उदासी को
जो मुझे उदास करती है
फिर देखता हूं
अपने आईने की आंखों से
और पाता हूं कि
उदासी तो मेरी आंखों
में ही है और
मैं फिर से उदास
हो जाता हूं
क्‍योंकि मैं तो
उदास था ही
लेकिन अब मेरे आईने
की आंखें भी
मेरी उदासी को देख
और ज्‍यादा उदास हो गई

Thursday, 15 May 2008

और कविता खत्‍म हो गई

एक बच्‍चा घर की मुंडेर पर
हाथ में खाने की चीज लिए हुए
अपनी मां के साथ
कभी चीज को निहारता
कभी खाता
और
खाता ही जाता
लेकिन
खाते-खाते सोचता
कि
कम-कम खाऊं
ताकि
जल्‍दी खत्‍म न हो
यदि कोई मांगे तो
दूर से ही दिखाना
और
जल्‍दी से अपना हाथ पीछे खींच लेता
अपनी चीज किसी को नहीं देता
ये ही तो उस बच्‍चे का बचपन है
यही तो उस बच्‍चे
का जीवन है
लेकिन ये क्‍या
कविता खत्‍म हो गई
और बच्‍चे की चीज
हाथ में अभी भी
बाकी है

पिताजी

सुबह-सुबह सूर्य की किरणें
हमारी छत पर पडती
और मेरे पिताजी
चिडियों को दाना डालने जाते
चिडियों का झुंड आता
और मेरे पिताजी की हथेली से
दाने चुगता
अब ना तो सूर्य की किरणें ही
हमारी छत पर पडतीं हैं
और ना ही चिडिया
दाना चुगने आती हैं
सूर्य की किरणें मधम पड गई
या
चिडियों को ही किसी ने मार दिया
-विजय मौदगिल

संगीत

कहां है संगीत
जो हम चिडियों की चहचहाहट में सुनते थे
कहां है संगीत
जो हम झरते हुए झरने, नदी और नहरों के पानी में सुनते थे
कहां है संगीत
जो हवा चलने पर पत्‍तों की खडखडाहट से पैदा होता था
शायद हमने उस संगीत को दबा दिया
मैं सुनना चाहता हूं वो संगीत
कोई सुनाओ मुझे वो संगीत
-विजय मौदगिल

संगीत

मैंने सुना है संगीत
एक बच्‍चे से
जिसके हाथ में है इकतारा
वो गा रहा है
मां हुंदी ऐ मां ओ दुनिया वालियों
मैंने सुना है संगीत
उसके फटे हुए कपडों से
जिसमें से गा रहा है उसका बदन
मैंने सुना है संगीत
रेल के ठंडे फर्श पर रखे उसके नंगे पांव से
मैंने सुना है संगीत
ठंड से नीले पड गए उसके होंटों से
मैंने सुना है संगीत
उसकी आंखों से
जो लोगों के हाथ में तलाश रहीं हैं एक रूपया
यह संगीत मुझे उदास कर देता है
-विजय मौदगिल