हे प्रिये जब तुम साथ मेरे होते हो
कितने ही अफसाने कहते हो
होता है मीठा सा अहसास
उन तानों में भी जो तुम देते हो
विरह वेदना से हो पीडित
याद मुझे तुम करते हो
जब भी ताने तुम देते थे
अब भी ताने तुम देते हो
हे प्रिये जब तुम साथ मेरे होते हो
क्या तुम्हें नहीं पता दूरी बढाती है प्यार
विरहनी बनी थी मीरा
राधा ने भी रस चखा
चखकर तुम भी रस विरह का
ताने हजार देते हो
हे प्रिये जब तुम साथ मेरे होते हो
इस विरह में तुम्हारे
दिन तो गुजर जाता है
आते आते शाम और फिर रात के
ये दिल पगला सा जाता है
और कोसता हूं इस विरह को मैं भी
जिसमें ताने तुम देते हो
हे प्रिये जब तुम साथ मेरे होते हो
13 comments:
विरह वेदना की बखूबी अभिव्यक्ति की है मोहन जी आप ने अपनी इस कविता में.
बहुत सुन्दर.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है ... अच्छी रचना।
kya kahu ab main apko, yaar dinodin paripakav hote ja rahe hain aap. maza ata hai apko padhkar
बहुत खूब मोहन जी।
मोहन जी
आपकी कविता पढ के दिल खुशी से झुम उठा ! इतना सुन्दर लिखा है आपने कि मै शब्दो मे बयान नही कर सकती !
माशाल्लाह लाजवाब है !
उर्मि
इस विरह में तुम्हारे
दिन तो गुजर जाता है
आते आते शाम और फिर रात के
ये दिल पगला सा जाता है
और कोसता हूं इस विरह को मैं भी
जिसमें ताने तुम देते हो
हे प्रिये जब तुम साथ मेरे होते हो
--क्या बात है मोहन भाई-बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!!
सुंदर अभिव्यक्ति
कभी कभी विरह भी प्रेम की उर्जा को बनाये रखने के लिए जरूरी होती है .
इस विरह में तुम्हारे
दिन तो गुजर जाता है
आते आते शाम और फिर रात के
ये दिल पगला सा जाता है
वाह जी मोहन जी ...क्या खूब बाँधा है शब्दों को.....!!
यह भी प्रेम का एक रंग है जिसके बिना प्रेम अधूरा है ,बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....
मेरी शुभकामनाएं ........
मोहन भाई, कोई नाराजगी है क्या।
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मॉं की गरिमा का सवाल है
प्रकाश का रहस्य खोजने वाला वैज्ञानिक
mohan ji
namaskar
main kya kahun teen bhaar padh chuka hoon aapki kavita , man khin ruk chuka hai , kuch uljh gaya hai .. aankhe ko kone bheege hue hai ..
bhaiyya , aapki lekhni ko salaam bus aur kuch nahi kahunga ..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com
आप इतना सुंदर लिखते है कि आपकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है! लिखते रहिये और हम पड़ने का लुत्फ़ लेंगे!
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