Tuesday 9 December 2008

पापा आ जाओ

वह मासूम कली थी
अभी तो वह खिली थी
बीमार नहीं थी, पर लग रही थी
गोद में मां की अपनी
बेतहाशा जो बिलख रही थी
वह जिद कर रही थी
और रो रो कर कह रही थी
मुझे गुड्रडा नहीं
सचमुच के पापा चाहिएं
जो कहा कर गए थे कि
वह जल् घर आएंगे
और साथ में अपने
ढेर से कपडे और खिलौने
उस के लिए लाएंगे
फिर शहजादी को अपनी परी बनाएंगे
गोद में उठाकर
मेला ईद का दिखाने ले जाएंगे
पर
रमजान गुजर गया पूरा
और कल ईद होने वाली है
सब खुश हैं
पर
वह रो रही है
बेतहाशा बिलख रही है
और
पापा के अपने
आने की आहट सुन रही है
जबकि
रात एक फौजी चाचा आया था
साथ अपने ढेर से कपडे और
खिलौने भी लाया था
इन खिलौनों में एक गुड्रडा भी है
जिस पर एक टैग लगा है
और टैग पर रहमत बैग लिखा है

कृत
श्री एस एस हसन
एवं
फोटो साभार गूगल

31 comments:

Vinay said...

बहुत ख़ूब!

महेन्द्र मिश्र said...

bahut hi bhavaporn . dhanyawaad.

Unknown said...

aisee cheeje hila deti hai mere dost

sangit

Doobe ji said...

sundar rachna

ताऊ रामपुरिया said...

अत्यन्त मार्मिक रचना !

राम राम !

Anonymous said...

bahut marmik

डॉ .अनुराग said...

भावुक कर दिया आपने !

ghughutibasuti said...

बहुत ही मार्मिक ! ऐसा दुख न जाने कितने बच्चों को झेलना पड़ता है ।
घुघूती बासूती

Puja Upadhyay said...

marmik rachna.

Udan Tashtari said...

उफ़्फ़!!! बेहद मार्मिक!!!

अब सहज होने को वक्त चाहिये-अभी कुछ नहीं.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत भावभीनी रचना है।बहुत बढिया!

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही मार्मिक, भावः पूर्ण रचना

prabhat gopal said...

bahut marmik

राज भाटिय़ा said...

ऒर टैंग पर रहमत बैग लिखा है....
बहुत भावुक कर दिया आप ने अब इस नन्ही सी परी को किन शव्दो मै समझाया जाये.
धन्यवाद

Tum said...

Bahut hi bhawuk !!!!!!!!
Thanx fr visiting and encouraging me.

seema gupta said...

" बहुत भावुक कर गयी आपकी ये पोस्ट, और सोचने पर मजबूर भी"

Regards

मीत said...

दिल में टीस सी भर गयी यह रचना...
परिचय करवाने के लिए आभार...
---मीत

मोहन वशिष्‍ठ said...

आपने यह रचना श्री एस एस हसन जी की लिखित पढी और उसको सराहा जिसके लिए मैं तहेदिली आपका शुक्रगुजार हूं और श्री हसन साहब जो कि लेखनी के सरताज हैं उनकी लेखनी को नमन करता हूं और आप सभी आने वालों का एक बार फिर से धन्‍यवाद करता हूं और आशा करता हूं कि आप इसी तरह से लेखक का और मेरे जैसों का उत्‍साह वर्धन करते रहेंगे

दर्दे दिल said...

मोहनजी आपने बहुत मार्मिक लिखा है और मेरा दर्द समझने के लिए आपका धन्यवाद, आप भी दुआ करे की वो जल्दी मान जाए और मुझे जल्दी फ़ोन करे

दर्दे दिल said...

मोहनजी आपने बहुत मार्मिक लिखा है और मेरा दर्द समझने के लिए आपका धन्यवाद, आप भी दुआ करे की वो जल्दी मान जाए और मुझे जल्दी फ़ोन करे

हरकीरत ' हीर' said...

एक बच्‍चे के मनोभावो को हसन जी ने बखूबी उतारा है मोहन जी आपको बधाई...

vijay kumar sappatti said...

bhaiyya , aisa mat likho , meri aankhe bheeg gayi hai ..

mat likho aisi rulane wali baaten.

vijay
poemsofvijay.blogspot.com

श्रुति अग्रवाल said...

बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ...बच्चों के मनोभाव को बताते हुए यह भी समझा दिया कि शहीद का कोई धर्म नहीं होता...

Alpana Verma said...

मार्मिक रचना mohan ji.श्री हसन साहब ko hamari taraf se baal hridya ke bhaavon ki khubsurat abhivyakti wali rachna ke liye abhaar dijeeyega.

Manuj Mehta said...

माफ़ी चाहूँगा, काफी समय से कुछ न तो लिख सका न ही ब्लॉग पर आ ही सका.

आज कुछ कलम घसीटी है.

आपको पढ़ना तो हमेशा ही एक नए अध्याय से जुड़ना लगता है. आपकी लेखनी की तहे दिल से प्रणाम.

दर्दे दिल said...

मोहनजी मैं उससे कभी झगडा नही करता क्योंकि मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ. पर वो है की हर बार वादा तोड़ कर मेरा दिल तोड़ देती है. पता नही वो ऐसा क्यों करती है, वो क्यों नही समझती की मैं उससे कितना प्यार करता हूँ. आज फ़िर फ़ोन नही किया.

दर्दे दिल said...

मोहनजी मुझे भी रात को अहसास हुआ की शायद मैंने उसे कल कुछ ज्यादा ही कह दिया. शायद इतना नही कहना चाहिए था. अब जब भी उसका फ़ोन आएगा मैं उस से माफ़ी मांग लूँगा पर मोहनजी मुझे अभी भी उसकी बातो पर विशवास नही होता और ये भी सच है की मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ

विक्रांत बेशर्मा said...

बहुत ही मार्मिक रचना है !!!

Anonymous said...

good jani
kya likhte ho bhai

PREETI BARTHWAL said...

बहुत ही खूब

sandhyagupta said...

Shabd nahin mil rahe....