बीमार नहीं थी, पर लग रही थी
गोद में मां की अपनी बेतहाशा जो बिलख रही थी
वह जिद कर रही थी मुझे गुड्रडा नहीं
सचमुच के पापा चाहिएं जो कहा कर गए थे कि
वह जल्द घर आएंगे और साथ में अपने
ढेर से कपडे और खिलौनेरमजान गुजर गया पूरा
और कल ईद होने वाली हैवह रो रही है
बेतहाशा बिलख रही हैपापा के अपने
आने की आहट सुन रही हैरात एक फौजी चाचा आया था
साथ अपने ढेर से कपडे औरकृत श्री एस एस हसन
एवं
फोटो साभार गूगल
31 comments:
बहुत ख़ूब!
bahut hi bhavaporn . dhanyawaad.
aisee cheeje hila deti hai mere dost
sangit
sundar rachna
अत्यन्त मार्मिक रचना !
राम राम !
bahut marmik
भावुक कर दिया आपने !
बहुत ही मार्मिक ! ऐसा दुख न जाने कितने बच्चों को झेलना पड़ता है ।
घुघूती बासूती
marmik rachna.
उफ़्फ़!!! बेहद मार्मिक!!!
अब सहज होने को वक्त चाहिये-अभी कुछ नहीं.
बहुत भावभीनी रचना है।बहुत बढिया!
बहुत ही मार्मिक, भावः पूर्ण रचना
bahut marmik
ऒर टैंग पर रहमत बैग लिखा है....
बहुत भावुक कर दिया आप ने अब इस नन्ही सी परी को किन शव्दो मै समझाया जाये.
धन्यवाद
Bahut hi bhawuk !!!!!!!!
Thanx fr visiting and encouraging me.
" बहुत भावुक कर गयी आपकी ये पोस्ट, और सोचने पर मजबूर भी"
Regards
दिल में टीस सी भर गयी यह रचना...
परिचय करवाने के लिए आभार...
---मीत
आपने यह रचना श्री एस एस हसन जी की लिखित पढी और उसको सराहा जिसके लिए मैं तहेदिली आपका शुक्रगुजार हूं और श्री हसन साहब जो कि लेखनी के सरताज हैं उनकी लेखनी को नमन करता हूं और आप सभी आने वालों का एक बार फिर से धन्यवाद करता हूं और आशा करता हूं कि आप इसी तरह से लेखक का और मेरे जैसों का उत्साह वर्धन करते रहेंगे
मोहनजी आपने बहुत मार्मिक लिखा है और मेरा दर्द समझने के लिए आपका धन्यवाद, आप भी दुआ करे की वो जल्दी मान जाए और मुझे जल्दी फ़ोन करे
मोहनजी आपने बहुत मार्मिक लिखा है और मेरा दर्द समझने के लिए आपका धन्यवाद, आप भी दुआ करे की वो जल्दी मान जाए और मुझे जल्दी फ़ोन करे
एक बच्चे के मनोभावो को हसन जी ने बखूबी उतारा है मोहन जी आपको बधाई...
bhaiyya , aisa mat likho , meri aankhe bheeg gayi hai ..
mat likho aisi rulane wali baaten.
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ...बच्चों के मनोभाव को बताते हुए यह भी समझा दिया कि शहीद का कोई धर्म नहीं होता...
मार्मिक रचना mohan ji.श्री हसन साहब ko hamari taraf se baal hridya ke bhaavon ki khubsurat abhivyakti wali rachna ke liye abhaar dijeeyega.
माफ़ी चाहूँगा, काफी समय से कुछ न तो लिख सका न ही ब्लॉग पर आ ही सका.
आज कुछ कलम घसीटी है.
आपको पढ़ना तो हमेशा ही एक नए अध्याय से जुड़ना लगता है. आपकी लेखनी की तहे दिल से प्रणाम.
मोहनजी मैं उससे कभी झगडा नही करता क्योंकि मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ. पर वो है की हर बार वादा तोड़ कर मेरा दिल तोड़ देती है. पता नही वो ऐसा क्यों करती है, वो क्यों नही समझती की मैं उससे कितना प्यार करता हूँ. आज फ़िर फ़ोन नही किया.
मोहनजी मुझे भी रात को अहसास हुआ की शायद मैंने उसे कल कुछ ज्यादा ही कह दिया. शायद इतना नही कहना चाहिए था. अब जब भी उसका फ़ोन आएगा मैं उस से माफ़ी मांग लूँगा पर मोहनजी मुझे अभी भी उसकी बातो पर विशवास नही होता और ये भी सच है की मैं उससे बहुत प्यार करता हूँ
बहुत ही मार्मिक रचना है !!!
good jani
kya likhte ho bhai
बहुत ही खूब
Shabd nahin mil rahe....
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