Thursday 31 July 2008

चेहरे का नूर

देखकर तेरे चेहरे का नूर
पतझड में भी आ जाती है बहार
हो जाए खुदा भी कायल तेरा
देखकर तेरे चेहरे का नूर

जब चलती है तू इठलाकर
हो जाती है है मस्‍त पवन
झूमते हैं बादल गाता है ये गगन
देखकर तेरे चेहरे का नूर

हंसती है जब तू खिलखिलाकर
चमन का हो जाता है श्रृंगार
सूखे झरने में आ जाती है फुहार
देखकर तेरे चेहरे का नूर

निकले जब खुली जुल्‍फों को चेहरे पे बिखेर
चुप हो जायें काले बादल मुंह को फेर
शर्मा जाती है कायनात भी हुजुर
देखकर तेरे चेहरे का नूर

उन लम्‍हों में तेरा नूर
करता है चांद को भी बेनूर
असंख्‍य तारों के बीच से
उतरे जमीन पर एक कोहिनूर
देखकर तेरे चेहरे का नूर

25 comments:

seema gupta said...

उन लम्‍हों में तेरा नूर
करता है चांद को भी बेनूर
असंख्‍य तारों के बीच से
उतरे जमीन पर एक कोहिनूर
देखकर तेरे चेहरे का नूर
"bhutttttt shuder, kmal, bemesal"
क्या परी क्या अप्सरा
तेरे सामने ना कोई कोई हुर,
सबके दिल को घायल कर दे
देखकर तेरे चेहरे का नूर

बालकिशन said...

फ़िर से वही कहने का मन मन कर रहा है कि
मोहन के मन ने तो मन मोह लिया है.
बहुत ही शानदार और प्यारी कविता.
बहुत उम्दा.

डॉ .अनुराग said...

bahut khoob......

समयचक्र said...

हंसती है जब तू खिलखिलाकर
चमन का हो जाता है श्रृंगार
सूखे झरने में आ जाती है फुहार
देखकर तेरे चेहरे का नूर
bahut sundar. badhai.

Anonymous said...

bhut badhiya. likhate rhe.

Anonymous said...

bhut hi sundar. badhai ho. jari rhe.

ताऊ रामपुरिया said...

उन लम्‍हों में तेरा नूर
करता है चांद को भी बेनूर

मोहन के कवि मन के अल्फाज
अति सुंदर ! बहुत बहुत ही सुंदर !
शुभकामनाए !

बाल भवन जबलपुर said...

असंख्‍य तारों के बीच से
उतरे जमीन पर एक कोहिनूर
इसे थोड़ा इस तरह कहिए "सितारों के बीच जा बैठे ज़मीन का कोह-ऐ-नूर [कोहिनूर]"
किंतु इतनी मदिर-मधुर कविता को संशोधित कराने का कोई अधिकार नहीं ये मेरी
टिप्पणी मात्र है.
आदर सहित
आपका ही गिरीश बिल्लोरे मुकुल

मोहन वशिष्‍ठ said...

सीमा जी, बालकिशन जी, अनुराग जी, महेन्‍द्र मिश्रा जी, विवेक चौहान जी, वकील साहब जी, पीसी रामपुरिया जी और गिरीश बिल्लोरे मुकुल जी आपका बहुत बहुत धन्‍यवाद कि आपने मेरी इन पंक्तियों को पढकर सराहा और मेरा साहस बढाया आपका शुक्रगुजार हूं और special thanx to Mr. Girish Billore Mukul ji का जिन्‍होंने मुझे एक बहुत ही बडी शिक्षा दी है मैं आपका तहेदिल से शुक्रगुजार हूं और रहूंगा मैं यही चाहता हूं कि आप ही मुझे सिखाएं कि किस तरह से लिखना चाहिए क्‍योंकि लिखने के मामले में तो मैं अभी बच्‍चा हूं और बस सीख रहा हूं कोशिश कर रहा हूं कुछ लिखने की आप सभी का और मेरे ब्‍लाग पर आने वाले सभी आगंतुकों का हार्दिक धन्‍यवाद और स्‍वागत मेरी अभिलाषा है आपसे प्रार्थना है कि इसी तरह से अपना प्‍यार आर्शिवाद मुझे देते रहें

राकेश खंडेलवाल said...

वाह.. क्या खूब

Anonymous said...

वाह जी वाह क्‍या बात है कविताओं का अंबार लगा रखा हे यहां तो यार तुम घर से तो कवि बनकर नहीं आए थे यहां आकर क्‍या हो गया खैर बहुत अच्‍छा लिखने लगे हो लिखो खूब आगे बढो

Geet Chaturvedi said...

वाह भई. बढि़या. लगे रहो.

Nitish Raj said...

वाह मोहन जी, इस बार तो बाजी मार गए... सुंदर रचना, अति उत्तम।।।।।।

अमिताभ मीत said...

अच्छा है. लिखते रहें.

Rajesh Roshan said...

बहुत खूब, वाकई लाजवाब वशिष्ठ जी

असंख्‍य तारों के बीच से
उतरे जमीन पर एक कोहिनूर

Anonymous said...
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Pragya said...

bahut khoob mohan ji...
kitne achhe se taarif ki hai aapne... bahut achha

Ila's world, in and out said...

आपकी कविता में बहुत कशिश है,सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई.

shelley said...

mohan ji aapk chehare ke noor ne man moh liya , bahut khub

ताऊ रामपुरिया said...

भाई भतीजे ताऊ आया था इत् कुछ नया
देखण वास्ते ! भई पुराणै मै भी घण्णा
मजा आया ! इब नई पढण सुनण खातर
ताऊ नै कब बुलारे हो ? बताओ !

भई इस तरिया लिख कर बुलंदियों पर
पहुँचो ! यही ताऊ का आशीर्वाद सै !

परमजीत सिहँ बाली said...

अपने मनोंभवों को बखूबी अभिव्यक्त किया है।बहुत बढिया!

PREETI BARTHWAL said...

निकले जब खुली जुल्‍फों को चेहरे पे बिखेर
चुप हो जायें काले बादल मुंह को फेर
शर्मा जाती है कायनात भी हुजुर
देखकर तेरे चेहरे का नूर

बहुत बढिया रचना है।

पढ कर आपकी रचना का नूर,
खिल गए वो चेहरे,
जो हो गए थे थक कर चूर।

L.Goswami said...

सुंदर कविता !! वैसे साहित्य के मामले में हम पैदल हैं फ़िर भी कहतें हैं.
..और एक बात भैया मोहन जी मेरा नाम लवली है संचिका नही ही ही ही

ilesh said...

उन लम्‍हों में तेरा नूर
करता है चांद को भी बेनूर
असंख्‍य तारों के बीच से
उतरे जमीन पर एक कोहिनूर
देखकर तेरे चेहरे का नूर

umda likha he aapne.....

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah-Wah
aapka andaaz bhi khoob hai....