Monday 28 July 2008

तुम लगते हो कौन मेरे



मैं तुमसे मोहब्‍बत कर तो लूं लेकिन
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे
तुम करोगे बस बेइन्‍तहा प्‍यार
इतना तुम पर एतबार कर लूं कैसे
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे

दिल पे हो मेरे तुम्‍हारा ही इख्तियार
तुम बनाओगे बहाने हजार यार
दो घडी तुम्‍हारा इंतजार कर लूं कैसे
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे

मैं सोचता हूं तुमको बता दूं आज
तुम हर सांस में बसी हो मेरे
तुम हर जज्‍वात से उलझती हो मेरे
तुम हर प्‍यार में झलकती हो मेरे
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे

तू जान है मेरी तेरी यादों से ही
गुजरती है जिंदगी मेरी
तेरी जुल्‍फों में खो जाऊं
तुम रूठो तो तुम्‍हें मनाऊं
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे

17 comments:

seema gupta said...

उसकी जुल्फों मे खो तो जाऊँ लेकिन
वो रूठे तो उसको मनाऊँ लेकिन
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे
दिल चाहता है के उस को आज बता हे दूँ की
…………..वो ही मेरी सब कुछ लगती है !!

very soft touching poem beautifully composed.. well done

रंजू भाटिया said...

सुंदर लिखी है आपने कविता

शोभा said...

तुम करोगे बस बेइन्‍तहा प्‍यार
इतना तुम पर एतबार कर लूं कैसे
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे
बहुत सुन्दर लिखा है।

नीरज गोस्वामी said...

जिन रिश्तों के नाम नहीं होते ...वो बहुत प्यारे होते हैं...बहुत अच्छी रचना.
नीरज

alok said...

yugo yugo se wahi ek sawal
tum lagte kaun ho mere
tum lagte kaun ho mere

kash ki mai -------uttar de pata but I will try

डॉ .अनुराग said...

सुंदर जज्बात .....

Anonymous said...

bhut sundar rachana. likhte rhe.

Udan Tashtari said...

वाह! बहुत सुन्दर.बहुत बधाई.

मोहन वशिष्‍ठ said...

सीमा जी रंजना जी शोभा जी नीरज जी आलोक जी अनुराग जी वकील साहब जी और समीर जी आप सभी का बहुत बहुत धन्‍यवाद मेरे ब्‍लाग पर आकर मुझे अपना आर्शिवाद रूपी कमेंट देने के लिए कृप्‍या यूं ही अपना आर्शिवाद देते रहें

मोहन वशिष्‍ठ

बालकिशन said...

मोहन के मन ने तो अपना भी मन मोह लिया है.
बहुत ही प्यारे से जज्बात और उनकी सुंदर अभिव्यक्ति. शब्दों और चित्रों के माध्यम से.

Vinay said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति!

vipinkizindagi said...

सुन्दर.........
बहुत सुन्दर.......

Dr. Ravi Srivastava said...

मोहन जी, आप मेरे ब्लॉग पर आये, शुक्रिया. मैंने आप का ब्लॉग देखा. मोहन जी, आप ने टॉप पर चित्र में पत्थर पर गुलाब उगते हुए दिखाया है.......कृपया डिटेल में समझांयें की चक्कर क्या है????

...रवि

Anonymous said...

good yarr. lage raho

vijay kumar sappatti said...

boss, bahut badiya ,mast poem hai yaar..

L.Goswami said...

sundar kavita rochak aur bhawpurn bhi.

* મારી રચના * said...

kya bata hai....alfaaz kam hai bayaa karne ke liye... likhte rhaiyega...