Thursday 24 July 2008

कभी प्‍यार से आबाद मैं भी था



कभी प्‍यार से आबाद मैं भी था
इस प्‍यार के जहां में नायाब मैं भी था
क्‍या हुआ आज हम हैं बर्बाद अगर
प्‍यार के जहां में इरशाद कभी मैं भी था

वफा से उनकी जीना मैने सीखा था
जफा से उनकी रोना मैंने सीखा था
वादा या रब साथ जीने मरने का था

वफा ए यार सितम सब चलता था
मुहब्‍बत का मजाक भी कभी बनता था
हाथों से हाथ साहिल से नाता जुडता था
राहों में भटकते गमों से भी पाला पडता था


सोचा हबीब जिसे वो रकीब का मिलना था
दिल ए नादान को मिले जख्‍मों को सिलना था

क्‍या खबर थी सितमगर को जुल्‍म ढाना था
प्‍यार में उनके हमें धोखा ही खाना था
वफा हमारी में बेवफा उनको तो हो जाना था

19 comments:

vijaymaudgill said...

सोचा हबीब जिसे वो रकीब का मिलना था
दिल ए नादान को मिले जख्‍मों को सिलना था

क्या बात है जनाब आप तो छा गए सच में बहुत ही ख़ूबसूरत शब्दो में पिरोई है रचना।
आप तो बहुत मीने-मीसने निकले।
बधाई हो।

Anonymous said...

महोदय जी....,प्यार को इन शब्दों में गूंथा.... बडा अच्छा लगा... शब्दों से बता नहीं सकता.... कि कितना...

रंजू भाटिया said...

बेहद खुबसूरत लगा हर शब्द इस का

seema gupta said...

wah kmal, bemesaal. 'dard-e-kasmey pr humko too neebahna tha, yun jindge bhr kask-e-bekrare ka bojh uttahna tha'

PREETI BARTHWAL said...

सोचा हबीब जिसे, वो रकीब का मिलना था
दिल-ए-नादान को मिले, जख्‍मों को सिलना था
बहुत बढिया।
ये आग और नही,दिल की आग है नादां,
चिराग हो कि न हो,जल बुझेंगे परवाने।

Nitish Raj said...

क्‍या खबर थी सितमगर को जुल्‍म ढाना था
प्‍यार में उनके हमें धोखा ही खाना था
वफा हमारी में बेवफा उनको तो हो जाना था

हे पार्थ, मुहब्बत और वफा को जिस अंदाज में
शब्दों में पिरोया वाह! क्या कहने...

Udan Tashtari said...

बेहद खुबसूरत ..बहुत उम्दा...वाह!

मोहन वशिष्‍ठ said...

विजय जी, उमेश जी , रंजना जी , सीमा जी प्रीती जी और लेखनी के उस्‍ताद नीतिश राज जी और समीर जी आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया कि आपने मेरी इन लाइनों की सराहना की आपकी ये सराहना ही मुझे लिखने के लिए ताकत देती है और मैं कुछ आप ही के शब्‍दों को जोडने का प्रयास मात्र करता हूं आपका तहेदिल से धन्‍यवाद

मीत said...

apki hosla afzai ke liye bahut shukriya..
waise ek bat hum bhi jan gaye ki aapki kalam main bhi bahut dhar hai ye ghayal karna janti hai..
keep it up
MEET

Anonymous said...

wah ji aap to likhne bhi lage tabhi to mai kahata tha ki aap chalte samay haath kyun hilate they apne aap se badbadate they ab samajh aaya

surender delhi pk

डॉ .अनुराग said...

सोचा हबीब जिसे वो रकीब का मिलना था
दिल ए नादान को मिले जख्‍मों को सिलना था

bahut khoob.....dil ko choo liya

शोभा said...

bahut sundar likha hai

नीरज गोस्वामी said...

मोहन जी
बड़ी प्यारी सी रचना दी है आपने....एक दिल से निकल कर दूसरे दिल तक का रास्ता खामोशी से तय करती हुई...रचना के साथ चित्र भी बड़े खूबसूरत और माकूल लगाये हैं आपने...बधाई.
नीरज

life is beautiful said...

mohan ji bhaut acchi kavita hai.

mona said...

क्‍या खबर थी सितमगर को जुल्‍म ढाना था
प्‍यार में उनके हमें धोखा ही खाना था
वफा हमारी में बेवफा उनको तो हो जाना था
kya likha hai tumne tum sach main cha hi gye bahut asha likha hai pyar ke baare. har ek word main sacchai nazar aati hai iske

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर और उम्दा !
काबिले तारीफ़ है एक एक शब्द !
शुभकामनाए !

shelley said...

bhai, mohan maja aagaya. aapki kavitayan to kafi achchhi hain. bhavanao shacdo me dalna to aapse hi sihna hoga. isi tarah chachhe rahe...

बालकिशन said...

लगता है जैसे मेरे दिल का कोई पन्ना चुराकर उसमे से लिखा ये गीत आपने.
वाह!
बहुत खूब.

Advocate Rashmi saurana said...

vakai bhut badhiya rachana. ati uttam. likhte rhe.