Saturday, 28 March 2009
मैं बेरोजगार हूं मुझे नौकरी दे दो
डूबते हुए आदमी ने
पुल पर चलते हुए आदमी को
आवाज लगाई बचाओ बचाओ
पुल पर चलते आदमी ने नीचे
रस्सी फेंकी और कहा आओ
नदी में डूबता हुआ आदमी
रस्सी नहीं पकड पा रहा था
रह रह कर चिल्ला रहा था
मैं मरना नहीं चाहता
जिंदगी बहुत महंगी है
कल ही मेरी एमएनसी में नौकरी लगी है
इतना सुनते ही पुल पर चलते
उस आदमी ने अपनी रस्सी खींच ली
और भागता भागता एमएनसी गया
उसने वहां के एचआर को बताया कि
अभी अभी एक आदमी डूबकर मर गया है
और इस तरह आपकी कंपनी में
एक जगह खाली कर गया है
मैं बेरोजगार हूं मुझे नौकरी दे दो
एचआर बोला दोस्त
तुमने आने में थोडी देर कर दी
अब से कुछ देर पहले ही
इस नौकरी पर उस आदमी को लगाया है
जो उस आदमी को धक्का देकर
पहले यहां आया है
कुछ दिन पहले मेरे एक दोस्त की मेल आई मेल पढी तो लगा कि हां यह अपने ब्लाग पर सांझा किया जा सकता है और पेश कर दी आपकी खिदमत में
Wednesday, 25 March 2009
मंजिल की विसात ही क्या
रास्ता भी मैं भटक गया
सोचा था साथ दे देंगे मेरे कदम
चलेंगे मेरे साथ दूर तलक
मिल जाएगी मंजिल
होगी आसान डगर
कदम ही मेरा साथ छोड गए
तो मंजिल की विसात ही क्या
अब अपनों ने मुंह फेर लिया
दुनिया का भरोसा क्या करना
जब दोस्त ही दुश्मन बन गए
तो गैरों की बात ही क्या करना
किससे कहना किसको सुनना
है तकदीर का ये फसाना
कदम ही मेरा साथ छोड गए
तो मंजिल की विसात ही क्या
की थी कोशिश पकड उंगली चलने की
चला था कुछ दूर साथ उनके
छोड बीच राह में अकेले
चले गए मेरी उंगली थामने वाले
जब उंगली ने ही साथ छोड दिया
तो थामने वालों की बात ही क्या
कदम ही मेरा साथ छोड गए
तो मंजिल की विसात ही क्या
Saturday, 21 March 2009
बताओ तो जानें
माफ करना अभी आप सबको झिलाने का मूड नहीं बन पा रहा है। इसलिए अभी शांत ही बैठा हूं कुछ भी नहीं लिख रहा हूं बस पढने में व्यस्त हूं। आज अचानक ही बैठा था तो सोचा कि सबको यह भी बता देना बहुत जरूरी है कि मैं ब्लाग जगत में जीवित हूं। और नारद मुनि की तरह भ्रमण करता रहता हूं।
आज मुझे आप सभी की बहुत जरूरत आन पडी है। और मुझे यह भी पूरा यकीन है कि आप मेरी हरसंभव मदद करने को सदैव तत्पर होंगे। और आखिर होंगे भी क्यों ना सबको कुछ ना कुछ लिखकर हमेशा झिलाता रहता हूं। अब शायद कुछ लोग झिलाना शब्द को नहीं समझ सकें होंगे तो मैं खुद ही बता दूं कि झिलाना मतलब परेशान करना, सिर दर्द करना जैसे कहते हैं कि एक शेर अर्ज किया है अब इसे झेलो तो वही झिलाना हूं मैं
तो अब काम की बात की जाए
तो काम की बात यह है कि मुझे एक भजन जोकि श्रीकृष्ण के ऊपर बनाया गया है और में इसकी मूल सीडी उपलब्ध हो सकती है । यह भजन मैंने सन 2005 में सुना था। अगर किसी के पास सीडी हो या ये भजन हो तो कृप्या मुझे मेरे मेल आईडी जोकि मेरी प्रोफाइल में है पर बता दें साथ ही अपना नंबर भी दे दें ।
इस भजन में
कृष्ण मात यशोदा से अपने ब्याह की अर्ज करते हुए अपने लिए बटुआ सी बहू लाने की बात कहते हैं
अब आप सभी से यह मेरी अरदास है कि इस सीडी के बारे में कृप्या मुझे जरूर बताएं या फिर ये वाला भजन मुझे मेल कर दें आप सबकी मदद की दरकार है मुझे इस समय।
इसी बहाने आपसे सिर्फ एक छोटा सा सवाल पूछ रहा हूं शायद कईयों को पता भी होगा लेकिन बताना जरूर
एक बार एक मुर्गी अपने तीन चूजों के साथ सडक पार कर रही थी। सडक पार करते समय कार सामने आ गई और मुर्गी एक चूजे के साथ तो पार हो गई। बाकी चूजे पीछे ही रह गए। बाद में दोनों चूजे भी सडक पार आ गए। मुर्गी अपनी गिनती करने लगी और बोली ठीक है हम चारों बिल्कुल सुरक्षित है तो तुरंत ही सबसे छोटा चूजा भी बोल पडा वाह हम पांचों बिल्कुल ठीक हैं और सडक पार कर चुके हैं अब आप बताओ कि ये पांचवा चूजा कहां से आया। बताओ बताओ लेकिन याद रखें चीटिंग नहीं चलेगी
Tuesday, 10 March 2009
पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

Friday, 6 March 2009
जिंदगी में भरो रंग

पहले जब होली आती थी
खूब मस्तियां होती थी
जमीन भी गीली
आसमान भी गीला
होता सारा जहां रंगीला

दिन चार पहले होली के
सजते थे बाजार रंगों के
बच्चे पिचकारी चुनते थे
फिर भर रंग गुब्बारे फैंकते थे
रूकने पर राहगीर के
घर में छिपते फिरते थे
आता जैसे दिन फाग का

होता आसमान रंगों का
ढोल नगाडे बजते थे
हुर्रारे नाचते फिरते थे
घर-घर जाकर
पुआ-पकौडे खाते थे
कहीं पर मिलती बूंटी भोले की
मस्त होकर पीते थे
अब होली कहां रही रंगों की
दुश्मन हो गए भाई-भाई
रह गई होली खून की
लगा दिया गर रंग किसी को
गाली सुनने को मिलती है
अब गले लगाने की जगह
बंदूक गले पड जाती है
होली मनाने की जगह
अब गोली चलाई जाती है

कहां खो गए रंग गुलाल
कहां से आ गई शराब बीच में
रंग में भंग डालने को
मत भूलो तुम हो भारतवंशी
दी थी होली श्रीकृष्ण ने
खेली थी वृंदावन में
कहो तुम उस देश के वासी हो
होली आई है होली मनाओ
रंग गुलाल सभी को लगाओ
सब को अपने गले लगाओ
शराब, जुआ और बंदूके
इन सबको दूर भगाओ

(पकौडे खिलाओ होली मनाओ........... टिंग टिंग टिडिंग)
सभी फोटो साभार गूगल
Wednesday, 4 March 2009
योगेन्द्र मौदगिल जी की किताब की समीक्षा

मौदगिल साहब हरियाणा के हास्य-व्यंग्य कवि एवं गज़लकार हैं। उनकी कविता की 6 मौलिक एवं 10 संपादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने भारत भर में अनेक मंचीय काव्य यात्राएं की हैं। अनेक सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों व क्लबों से सम्मानित किए जा चुके हैं, उनमें 2001 में गढ़गंगा शिखर सम्मान, 2002 में कलमवीर सम्मान, 2004 में करील सम्मान, 2006 में युगीन सम्मान, 2007 में उदयभानु हंस कविता सम्मान और 2007 में ही पानीपत रत्न के सम्मान से नवाजा जा चुका है। सब टीवी, जीटीवी, ईटीवी, एमएचवन, चैनल वन, इरा चैनल, इटीसी, जैनटीवी, साधना, नैशनल चैनल आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से नियमित कवितापाठ करते आ रहे हैं। हरियाणा की एकमात्र काव्यपत्रिका कलमदंश का पिछले 6 वर्षों से निरन्तर प्रकाशान व संपादन करते आ रहे हैं। दैनिक भास्कर में 2000 में हरियाणा संस्करण में दैनिक काव्य स्तम्भ तरकश का लेखन। दैनिक जागरण में 2007 में हरियाणा संस्करण में दैनिक काव्य स्तम्भ मजे मजे म्हं का लेखन। अब तक पानीपत, करनाल एवं आसपास के जिलों अपितु राज्यों में 50 से अधिक अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों के सफल संयोजन में भी मौदगिल साहब की सहभागिता रही