ओ मेरे वतन के हत्यारों
क्या चाहते हो तुम बतलादो...
क्या तुम किसी मां के बेटे नहीं
क्या तुम किसी मांग के सिंदूर नहीं
क्या तुमको किसी राखी की लाज नहीं
क्यों करते हो खून खराबा
क्या तुमको जनमानस से प्यार नहीं
ओ मेरे वतन के हत्यारों
क्या चाहते हो तुम बतलादो...
चाहते हो तुम इस मेरे देश में
कर लो करना है तुमको जो
होगी शांति होगा मुकाबला
इस वीर वतन मेरे देश में
ओ मेरे वतन के हत्यारों
क्या चाहते हो तुम बतलादो...
क्या चाहते हो तुम बतलादो...
मत भूलो चंद्रशेखर आजाद भगतसिंह
पैदा हुए थे इसी देश में
चटा दी थी धूल दुश्मनों को
इस वीर वतन मेरे देश में
अब बारी है तुम्हारी
ओ मेरे वतन के हत्यारों
क्या चाहते हो तुम बतलादो...
क्या चाहते हो तुम बतलादो...
15 comments:
bhut khtrnak or dardnak manjar hai dekh kr dil dehal gya hai. Ye sach mey humare vatan ke dushman hai jinka koe dharm eman nahe hai...
shayad ye padha ke un hathiyao ki aankhe khul jaaye... marmsparshi rachana hai aapki... salaam apako...
पता नहीं इस देश का क्या होगा
मार्मिक रचना..
संवेदन जागृत करती हुई..
आप धन्य हैं..
मत भूलो चंद्रशेखर आजाद भगतसिंह
पैदा हुए थे इसी देश में
चटा दी थी धूल दुश्मनों को
इस वीर वतन मेरे देश में
अब बारी है तुम्हारी
ओ मेरे वतन के हत्यारों
क्या चाहते हो तुम बतलादो...
sachchi baat likhi hai aapne....pic bhi bahut kuch kah rahe hain
दरअसल देश और यहाँ के बाशिंदे इसी तरह की त्रासदियों को भोगने के लिए अभिशप्त हैं। चरम पर पहुँच चुके भ्रष्टाचार, अय्याशी और क्षेत्रवाद के बीच देश के बारे में सोचने के लिए किसी के पास फुरसत ही नहीं है। दरअसल सहिष्णुता की आड़ में हम कायरता दिखाते आए हैं। राष्ट्र के बारे में सोच कर निर्णय लेने का समय और क्षमता हमारे पास है ही नहीं। निर्णय के कारक तो सीधे वोट बैक और तुष्टिकरण से जुड़े हुए हैं।
apne wakai bahut sahi likhahai aur sach mei bahut chinta hoti hai ki desh kahan ja raha hai...
Bahut accha likha hai...
संवेदनात्मक रचना है ये ....
मत भूलो चंद्रशेखर आजाद भगतसिंह
पैदा हुए थे इसी देश में
चटा दी थी धूल दुश्मनों को
इस वीर वतन मेरे देश में
अब बारी है तुम्हारी
ओ मेरे वतन के हत्यारों
क्या चाहते हो तुम बतलादो...
मोहन जी दुःख की इस घड़ी में सभी प्रभावितों को हमारी संवेदनाएं, आंतकवाद के ऊपर लगाम ज्यादा कसनी होगी वरना ये घटनाएं होती ही रहेंगी.
आपकी रचना बड़ी मार्मिक और संवेदन शील है ! इंसान
के हत्यारे भला क्या चाहेंगे ? एक देशी कहावत है की
"बुढा मरे या जवान , सिर्फ़ ह्त्या से काम " मानवता
के हत्यारे हैं ये तो !
आज की हालत का सच्चा बयान! धन्यवाद!
क्या तुम किसी मां के बेटे नहीं
क्या तुम किसी मांग के सिंदूर नहीं
क्या तुमको किसी राखी की लाज नहीं
क्यों करते हो खून खराबा
क्या तुमको जनमानस से प्यार नहीं
बहुत ख़ूब...
क्या तुम किसी मां के बेटे नहीं
क्या तुम किसी मांग के सिंदूर नहीं
क्या तुमको किसी राखी की लाज नहीं
क्यों करते हो खून खराबा
क्या तुमको जनमानस से प्यार नहीं
ओ मेरे वतन के हत्यारों
क्या चाहते हो तुम बतलादो...
मोहनजी । इन दरिंदों का ना तो कोइ इमान है, ना ही भगवान। ना कोइ माँ है ना बहन। ना बीवी ना बच्चे। ये तो अपने आप मैं भी "ज़िंदा" हैं या नहिं इन्हें पता नहिं है।इनहें "शैतान" कहें या "हैवान"?
Jo kuchh bhi aapne likha hai..wo sochne samjhne ki taqat, ichha, savendana ....in logo mein hoti to ye esa kaam hi nahi karte...main wish karunga ki ye desh ke dushman aapki ye panktiya padhe aur 1 baar vichar karen...ki jo kuchh bhi wo kar rahe hai...usse unhe kya hasil hona hai... aur kasam khayen ki esa itihas fir na dohraya jaye...
Post a Comment