Thursday, 31 July 2008

चेहरे का नूर

देखकर तेरे चेहरे का नूर
पतझड में भी आ जाती है बहार
हो जाए खुदा भी कायल तेरा
देखकर तेरे चेहरे का नूर

जब चलती है तू इठलाकर
हो जाती है है मस्‍त पवन
झूमते हैं बादल गाता है ये गगन
देखकर तेरे चेहरे का नूर

हंसती है जब तू खिलखिलाकर
चमन का हो जाता है श्रृंगार
सूखे झरने में आ जाती है फुहार
देखकर तेरे चेहरे का नूर

निकले जब खुली जुल्‍फों को चेहरे पे बिखेर
चुप हो जायें काले बादल मुंह को फेर
शर्मा जाती है कायनात भी हुजुर
देखकर तेरे चेहरे का नूर

उन लम्‍हों में तेरा नूर
करता है चांद को भी बेनूर
असंख्‍य तारों के बीच से
उतरे जमीन पर एक कोहिनूर
देखकर तेरे चेहरे का नूर

Monday, 28 July 2008

तुम लगते हो कौन मेरे



मैं तुमसे मोहब्‍बत कर तो लूं लेकिन
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे
तुम करोगे बस बेइन्‍तहा प्‍यार
इतना तुम पर एतबार कर लूं कैसे
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे

दिल पे हो मेरे तुम्‍हारा ही इख्तियार
तुम बनाओगे बहाने हजार यार
दो घडी तुम्‍हारा इंतजार कर लूं कैसे
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे

मैं सोचता हूं तुमको बता दूं आज
तुम हर सांस में बसी हो मेरे
तुम हर जज्‍वात से उलझती हो मेरे
तुम हर प्‍यार में झलकती हो मेरे
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे

तू जान है मेरी तेरी यादों से ही
गुजरती है जिंदगी मेरी
तेरी जुल्‍फों में खो जाऊं
तुम रूठो तो तुम्‍हें मनाऊं
फिर सोचता हूं कि
तुम लगते हो कौन मेरे

Thursday, 24 July 2008

कभी प्‍यार से आबाद मैं भी था



कभी प्‍यार से आबाद मैं भी था
इस प्‍यार के जहां में नायाब मैं भी था
क्‍या हुआ आज हम हैं बर्बाद अगर
प्‍यार के जहां में इरशाद कभी मैं भी था

वफा से उनकी जीना मैने सीखा था
जफा से उनकी रोना मैंने सीखा था
वादा या रब साथ जीने मरने का था

वफा ए यार सितम सब चलता था
मुहब्‍बत का मजाक भी कभी बनता था
हाथों से हाथ साहिल से नाता जुडता था
राहों में भटकते गमों से भी पाला पडता था


सोचा हबीब जिसे वो रकीब का मिलना था
दिल ए नादान को मिले जख्‍मों को सिलना था

क्‍या खबर थी सितमगर को जुल्‍म ढाना था
प्‍यार में उनके हमें धोखा ही खाना था
वफा हमारी में बेवफा उनको तो हो जाना था

Tuesday, 22 July 2008

हे पार्थ

कृप्‍या नौकरीशुदा भाई ही पढें। क्‍योंकि आजकल इंक्रीमेंट के मामले में हर कंपनी का मैनेजमेंट का बस ऐसा ही हाल होता है।




Saturday, 12 July 2008

कोई



ऐ काश मुझपे इतना ऐतबार करे कोई
मेरी चाहत है वो ये मान जाए कोई

मेरी आंखों में बसा है बेइंतहा प्‍यार
ऐ काश उस प्‍यार को पहचान पाए कोई

दिल ये चाहे मुझे छेडे और सताए कोई
मैं ना मानू जो सताने से तो रूठ जाए कोई

हर आहट पे मेरे आने का गुमान करके
मेरे साये से यूं दौड कर लिपट जाए कोई

मेरी सांसों में समाने वाली खुशबू की तरह
मेरी बाहों में यूं तडप कर बिखर जाए कोई

मेरे जीने का सहारा भी कभी टूट जाएगा
मरने के बाद ही सही मेरे नाम का सिंदूर सजाए कोई

Friday, 11 July 2008

एक बच्‍चा

जेठ की टीक दुपहरी में
एक बच्‍चा, जो सेठ नहीं है
जिसके पैरों में डील के निशान
तन पर मैले-कुचैले फटे चीथडे
चेहरे पर चमक और आशा की किरण
हाथ में कुछ रूपये दबाए हुए
चला आया उस खाने की दुकान पर
जहां बडे बडे सेठ लोग
खा रहे हैं लजीज खाना
और देखकर बच्‍चे की ओर
मुंह बिचकाकर बोले
आ गया भिखारी
लेकिन अभी तो
बच्‍चे ने कुछ मांगा भी नहीं
वो तो पहले ही
कहीं से मांगकर लाया
कुछ रूपये
और चला आया
खाना लेने
उस दुकान पर
जहां बडे बडे सेठ लोग
खा रहे हैं लजीज खाना
नहीं आना चाहिए था उसे यहां
क्‍योंकि यहां मना है
उनका आना
जिनके पास कपडे नहीं हैं
पैरों में चप्‍पल नहीं हैं
हाथ में पैसे हैं तो क्‍या हुआ
वो सेठ भी तो नहीं हैं ना

Wednesday, 9 July 2008

क्‍या करते

चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं तो क्या करते।
दिल के जज्बात दिल में दबाते नहीं तो क्या करते।।
भरी महफिल में जब उन्होंने न पहचाना हमको।
नजर हम अपनी झुकाते नहीं तो क्या करते।।
उनके दुपट्टे में लगी आग न हमसे देखी जाती।
हाथ हम अपना जलाते नहीं तो क्या करते।।
दोस्तों ने जब सरे राह छोड दिया मुझको।
तब हम गैरों को बुलाते नहीं तो क्या करते।।
किस मुददत से वो देख रहा था राह मेरी।
वादा हम अपना निभाते नहीं तो क्या करते।।
चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं तो क्या करते।।
दिल के जज्बात दिल में दबाते नहीं तो क्या करते।
विजय जैन