Saturday 8 August 2009

बादलों जैसा जोश

गर हो जाए बादलों जैसा जोश हर इन्‍सां में
कभी तो सूरज को ले लेते हैं अपने आगोश में

गर हो जाए पानी जैसा तेज हर इन्‍सां
कभी तो पहाडों से रास्‍ता बना ही ले

9 comments:

vandana gupta said...

waah......kya khoob likha hai.........waqt sabka aata hai bas himmat honi chahiye kuch karne ki..........lajawaab.

Unknown said...

bahut khoob !

Dr. Amar Jyoti said...

सुन्दर है पर इसे पूरा विकसित करिये।

Udan Tashtari said...

बढि़या है. अमर ज्योति जी से सहमत. इसे आगे बढ़ायें.

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर भाव हैं.....लिखते रहें

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

मोहन जी,
इंसान का ही बूता है कि वह आड़ी-तीरछी ऊंची-नीची, गरम-सर्द हर जगह अपना गुजारा कर लेता है। चाहे 50-55 डिग्री तक तपता रेगिस्तान हो चाहे शून्य के नीचे हड़्ड़ीयां जमा देने वाली सर्दी। इसके हौसले पस्त नहीं होते।

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

जोश भर दिया आपने.........
वाह.....

Urmi said...

अत्यन्त सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये छोटी सी प्यारी सी रचना मुझे बहुत अच्छी लगी!

Mishra Pankaj said...

अत्यन्त सुंदर भाव