
ट्रेन की बर्थ पर लेटी एक लडकी
जो अभी मासूम है
अभी तो वह भोली है
जिन्दगी को समझना अभी बाकी है
ट्रेन की बर्थ पर लेटी एक लडकी
रात की हल्की हल्की सर्दी
ले रही है उसे अपने आगोश में
और वह लडकी सिमट रही है
अपने आप में
मानो एक नई नवेली दुल्हन
शर्माकर, घबराकर सिकुड जाती है अपने आप में
जब होता है उसका मिलन
ट्रेन की बर्थ पर लेटी एक लडकी
बचने के लिए सर्दी से
ले रही है अपने आप को
शाल के आगोश में
कभी सिर तो कभी पैर
रह जाते हैं बाहर उसके
फिर भी कर रही है
कोशिश बार बार
ट्रेन की बर्थ पर लेटी एक लडकी
चाय वाले की आवाज सुन
हुई उठ खडी वो लडकी
चाय ली एक घूंट पीया
और अनुभव किया गर्मी को
चेहरे पर मुस्कुराहट दौड आई
ट्रेन की बर्थ पर लेटी एक लडकी
अब
फिर से लिया अपने आप को
उस शाल के आगोश में
महसूस किया गर्मी को
और फिर चली गई
गहरी नींद के आगोश में
ट्रेन की बर्थ पर लेटी एक लड़की
-मोहन वशिष्ठ
29 comments:
क्या बात है, बड़ी रंगीन रचना कर डाली :)
वैसे हकीकत है या कल्पना ???
जो भी है बेजोड़ लिखा आपने …
ऐसे वाकये से काश हम भी रूबरू हो :)
bahut sundar
कुछ याद दिला गई ये कविता ....
आज पहली बार आना हुआ और मन जीत लिया।
bahut achcha likha hai.....kamaal
कई दिनों बाद अपना लिखा आप ने प्रस्तुत किया.बहुत अच्छी कविता है.
कोई कोई घटना अक्सर दिमाग ऐसे ही रह जाती है.
बहुत सुंदर कविता कही आप ने,
धन्यवाद.
अब ट्रेन मै बेठी लड्कियो की ओर ताकना बन्द कर दो,वरना... वेलन से बचना कठिन होगा मियां
acchi hai lagta hai kisi sundar yaad se judi hai aapki yah kavita
बहुत अच्छे मोहन जी!
बहुत बढिया
जरा भाटिया जी की बात पर ध्यान दिया जाये.:)
रामराम.
आप सभी ने मेरी इस कविता को सराहा इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। दरअसल मैं अभी दो तीन दिन पहले ही दिल्ली जा रहा था तो सामने वाली बर्थ पर एक लडकी थी बस उसको देखकर उसके हावभाव को देखकर लगा कि शायद इस तरह से कुछ लिखा जाए बस तभी पैन और कागज उठाया और लिख दिया बाकी याद वगैरा कोई नहीं जुडी हुई। भाटिया जी बेलन का डर तो तब होगा ना जब घर बताऊंगा मैं घर बताऊंगा ही नहीं हां अगर कभी घर पर देख लिया तो आपका नाम ले लूंगा कि आपने लिखकर भेजी है अब कहो बेलन से बचने की बारी किसकी हा हा हा
कविता तो बहुत ख़ूब दोस्त।
मगर भाटिया जी तो तब फंसेंगे ना जब मैं उन्हें फंसने दूंगा। मैं जो बैठा हूं घर जाकर ख़ुद भाभी जी को बताऊंगा और बच्चों को भी कि देखो क्या करते हैं तुम्हारे पिता। दो बच्चों के होते हुए भी ट्रेन में लड़की को देखता है और भाभी को छोड़कर उस पर कविता लिखता है। अब बताओ बेलन किसके लिए।
kya khoob kavita guru
सुन्दर।
मेरा अंदाज़ा बिल्कुल ठीक निकला.................par ये ट्रेन में लड़कियां जाती ही क्यूं हैं ?
... बहुत खूब!
ये हुई न मोहन भाई की नजर की तराश!! वाह!! बहुत बखूबी शब्द दिये हैं. मन प्रसन्न हो गया. बधाई.
' hme to is khabr ka intjar hai ki belan kiske ghr mey chla ok kisne chalvaya ha ha ha ' regards
just toooooo good.....
wah bhai wah. aisa to main v karti hu.
सुंदर शब्द चित्र है .
Very real and nice poem...
Regards
कविता में भी मजा आया और इस बेलन प्रकरण में भी।
बहुत भावपूर्ण कविता.
आप ट्रेन यात्राएं नियमित रूप से किया करें
कम से कम हम पाठकों को अच्छी कविताएँ तो पढने को मिलेंगी
kya khoob likha hai aapne..........tarif ke liye lafz kam hi pad jate hain.
Wah Mohan G,
Kamaal ki kavita hai.
Mann mein uthe baav ko apne achhi disha di hai...congrats mohan jee!
mohan kya hua dost ab likhte kyu nahi ho yaar. muddatt ho gayi yaar tumhara likha kush parhe huye. kush to post kar yaar. iktha shuru huye the yaar kush post kar jaldi.
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