Sunday 10 October 2010

********* पहचान **********

पेड के उपर चढा आदमी
ऊचा दिखाई देता है !
जड मे खडा आदमी
नीचा दिखाई देता है !
आदमी न ऊचा होता है, न नीचा होता है,
न बडा होता है,न छोटा होता है !
आदमी सिर्फ़ आदमी होता है !
पता नहीं इस सिधे, सपाट सत्य को
दुनिया क्यों नहीं जानती ?
और अगर जानती है,
तो मन से क्यों नहीं मानती ?
किसी संत कवि ने कहा है की
मनुष्य के उपर कोइ नहीं होता,
मुझे लगता है कि मनुष्य के उपर उसका मन होता है !
छोटे मन से कोइ बडा नहीं होता,
टुटे मन से कोइ खडा नहीं होता !
आदमी की पहचान,
उसके धन या आसन से नहीं होती,
उसके मन से होती है !
मन की फकीरी पर
कुबेर की संपदा भी रोती है !

-श्री.अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा रचित | 

वन्दे मातरम् !!!

6 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत आभार अटल बिहारी जी की रचना पढ़वाने का.

seema gupta said...

आदरणीय अटल जी की इस सुन्दर रचना से परिचय कराने का आभार

regards

Urmi said...

अटल बिहारी जी की रचना पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा said...

अटल जी की रचनाओं में अलग ही मज़ा है ... आभार पढ़वाने का ...

vijender said...

Bahut Badiya, lage raho munnabhai

अन्तर सोहिल said...

पहली बार आया हूँ
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा
लिंक सहेज लिया है

प्रणाम