वक्त के कर्कश थपेडों ने
खडा कर दिया आज मुझे
उस मोड पर
जहां से
पीछे हटने का नहीं है हौसला मुझमें
आगे बढने की ताकत नहीं मुझमें
ये एक मोड जिंदगी का मेरे
है खतरनाक
चंद कांटे ही कांटे हैं
न कोई फूल दामन में मेरे
पराए तो पराए ही थे
अब न रहे अपने भी मेरे
चलते थे साथ जो हमेशा
नहीं चलने देते
अब साथ भी अपने
21 comments:
चलते थे साथ जो हमेशा
नहीं चलने देते
अब साथ भी अपने
-जायज दर्द है.सही शब्द दिये.
बहुत खूब।
जख्मे जिगर हमारा भरने लगा था शायद।
नस्तर बतौर तोहफा उसने थमा दिया।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत ही सटीक. धन्यवाद.
'पराए तो पराए ही थे
अब न रहे अपने भी मेरे '
- दर्द की सजीव अभिव्यक्ति.
दर्द को बड़े सलीके से अभिव्यक्त किया है आपने........सुंदर रचना।
न कोई फूल दमन में
पराये तो पराये ही थे
अब न रहे अपने भी मेरे
चलते थे जो साथ हमेशा
नहीं चलने देते
अब साथ भी अपने....
अरे......! ऐसी क्या बात हो गयी मोहन जी.....??
bahut gehre jazbat nikle hai kalam se,dard ki paribhasha di ko chu gayi,bahut achhi rachana.
shabdon mein achchha bayan kiya hai dard
अति सुन्दर रचना...
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तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
इन दिनों कागज कुछ गमजदा हो रहा है......अगली बार कुछ हंसी बिखेरिये
चलते थे साथ जो हमेशा
नहीं चलने देते
अब साथ भी अपने .......
shaayad jindagi ka yahi matlab hi hai ...aadat daal leni chaahiye..shukun milega..
paray to paray hi the...
..par na rahe apne bhi mere...
satya hai ji !!
दर्द ही तो जीवन मे आगे बढ़ने की शक्ति देता है मोहनजी |
फ़र्क इतना है दूसरे दर्द देते है तो टीस न्ही होती अपने दर्द देते है तो टीस
अपना घर कर लेती है |
बहुत बहुत धन्यवाद आपके सुंदर कमेंट्स के लिए और ख़ूबसूरत पंक्तियों के लिए!
बहुत ही बढ़िया लगा ! ज़िन्दगी में सिर्फ़ सुख नहीं होता बल्कि दुःख और दर्द का वक्त भी आता है सही फ़रमाया मोहन जी आपने!
चलते थे साथ जो हमेशा
नहीं चलने देते
अब साथ भी अपने
दर्द को बड़े सलीके से अभिव्यक्त किया है आपने........सुंदर रचना।
सादर
चन्द्र मोहन गुप्त
चलते थे साथ जो हमेशा
नहीं चलने देते
अब साथ भी अपने
किसी के साथ न होने ka दुःख या किसी के खोने का दुःख......भावनात्मक पंक्तियाँ....
regards
चलते थे साथ जो हमेशा
नहीं चलने देते
अब साथ भी अपने
किसी के साथ न होने
sorry ..der se pahunchi hun...
aaj to yah kavita aap ne maayusi ke dhogon mein bati hai..
khaireeyat??
kavita khair hoti hi aisee hai ki kavi ke har bhaav ko khud mein samo kar us ke dil ko halka kar de.
इसमें कोई शक नही की ऐसा होता है ..पर इसमें भी कोई शक नही की वक्त बदलते देर नही लगती
very good dost bahut achcha likha hai
Achchi lahi aapki kavita.Badhai.
वाह मोहन जी अच्छी कविता के लिये बधाई.....
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