घर तो घर था घर हुआ करता था भाई बहन मां बाप सब के रहने से घर बना हुआ था घर धीरे धीरे बनता गया मकान मकान में कुछ लोगों के रहने से मकान मकान ही रहा न बन सका घर
दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे सम्बंधित लिंक पर जाकर देखें:- http://dakbabu.blogspot.com/2009/04/blog-post_08.html
17 comments:
waah sahib bahot hi gambhir baat ko likha hai aapne... aur itni aasaani se ke kya kahun... badhaayee swikaaren...
arsh
bahut sahi baat kahi
apki post ki charcha mere blaag me
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : जो पैरो में पहिनने की चीज थी अब आन बान और शान की प्रतीक मानी जाने लगी है
bahut achcha likha hai aap ne ki parivar se hi gar kehlata hai. parivar kr bins to sirf mkan hi hota hai.
bahut sahi likha hai Mohan ji,
ghar to rahne walon se hi banta hai..varna wah makaan hai.
[आज कल नेट पर बहुत कम आना हो पा रहा है इस लिए पोस्ट पर देर से आने पर माफ़ी चाहूंगी.]
घर के मकान में बदलने की पीड़ा आज महानगरों का ही नहीं कस्बों का भी हिस्सा बन चुकी है।
दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे सम्बंधित लिंक पर जाकर देखें:- http://dakbabu.blogspot.com/2009/04/blog-post_08.html
jindagi to yahi aakar mili...
Innt-Gaare Se To Makaan Bana Karte Hain, Ghar To Pyaar Mohaabaat Se Bna Karte Hain...
घर धीरे धीरे बनता गया मकान
मकान में कुछ लोगों के रहने से
मकान मकान ही रहा
घर न बन सका
वाह ...वाह...मोहन जी ......!!
बहोत गहरी बात कह गए आप तो....!!
एक घर को बनाना इतना भी नहीं आसां।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
baat agar sidhe dil par lag jaaye to kavit ka arth pura hota hai.......aur aap is mein saphal hue hain.
Dhanyawad
Navnit Nirav
Aapkee is rachnaane mujhe apne bachpankaa ghar yaad dila diya"Wo ghar bulata hai.." is tehet mere "Kavita" blogpe ek rachna hai..
बहुर सुन्दर रचना है मोहन जी...आपकी इस रचना को पढ़ कर मुझे एक शेर याद आ गया:
या खुदा मुझ पर बस इतना करम कर दे
मैं जिस मकान में रहता हूँ उसे घर कर दे
नीरज
good keep it up!
सटीक कहा!!
घर और मकान-कितना फासला है.
makan aur gher ke darmiyaan bhi kuch hota hai...
jo gher ko makan aur makan ko gher bana deta hai.....
aapki rachana dil ko choo gai
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