जब बेटी के होने पर खुशी मनती थी
आजकल क्या हुआ इस दुनिया को
कहां गई वो सुशील सुनैयना
और
वो घर की लक्ष्मी कहलाने वाली
आखिर क्या कसूर है इनका
जो इनको इस जहां में आने से
पहले ही भेज दिया जाता है
दूसरे जहां की ओर
जो आज मां है
कल वो भी किसी की बेटी थी
आज जो पत्नि है
वह भी किसी की बेटी थी
आने दो इस बेटी को
मत छीनो इससे जिंदगी इसकी
एक दिन यही बेटी
पूरी दुनिया की बेटी बनेगी
अपनी मेहनत से
अपनी लगन से
तुम्हारा और देश का
नाम रोशन करेगी
आने दो, आने दो
इस बेटी को आने दो
23 comments:
kavita bahut acchi lagi agar aap permission dae to kal isko naari kavita blog par post kar dun wahaan isii prakaar ki kavitaao kaa sangrh kar rahee hun
sadar
rachna
अच्छी है आशा
बदले परिभाषा
जो मन में
बेटी की तो जो
खुशियां मनती थीं पहले
वे अब भी मनने लगेंगी
मन अगर मथ जाए
मंथन सार्थक हो जाए गर।
आपने तो भावुक कर दिया
---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
बेटियॉं अब बेटों से आगे हैं।
SBAI TSALIIM
आने दो..आने दो. बेटी को आने दो.
-सुन्दर रचना !!
बहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने! बिल्कुल सही फ़रमाया की बेटी होने से कभी किसीको गम नहीं होना चाहिए क्यूंकि आजके ज़माने में बेटा या बेटी में कोई फरक नहीं है! बेटी तो आजकल बेटों से कई गुना आगे निकल रही है! पर आज भी हमारे समाज में बेटी और बेटे में भेदाभेद करते हैं और ये अनुचित है! मोहन जी आपके इस कविता ने दिल को छू लिया है!
मोहन जी सच कहा आपने।
आने दो, आने दो
इस बेटी को आने दो।
पर ऐसा कहाँ हो रहा है। पर वो दिन दूर नही जब ऐसा होने लगेगा। अपने हरियाणा को ही देख लो। वहाँ लडकी और लडके का रेसो क्या है? खैर वक्त बदलेगा जरुर। परसो देखा IAS में लड़कियों ने तीनों स्थान प्राप्त कर लिये। मोहन जी बेटियों से ही हमारी शान है। और आपने बेहतरीन लिखा।
देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक भ्रूण हत्या पर चेतना जगाने के लिए आपकी भावनात्मक कविता काबिले तारीफ है।
सुंदर भावपूर्ण सच्ची कविता
very touching.....m speechless...
बहुत अच्छी रचना .
आने दो, आने दो
इस बेटी को आने दो।
क्या कहूँ....?? जहां औरत की , बेटी की बात आती है निशब्द हो जाती हूँ......ताउम्र ज़्हन में उठते इन्हीं सवालों के बीच ही तो कटी है ......!!
आपने महत्वपूर्ण मुद्दे पर बहुत अच्छा लिखा है ..बधाई।
बहुत उम्दा सोच ..
आपकी कविता बहुत अच्छी है। वास्तव में बेटियां तो घर की शान होती हैं। इनको जीवन देने से पहले ही इनके जीवन का अंत करना दुनिया में सबसे बड़ा पाप है। ऐसे पापियों को कभी माफ नहीं करना चाहिए। बेटियां किस तरह के अपने परिवार राज्य और देश का नाम रौशन करती हैं इसका एक उदाहरण हमारे शहर रायपुर में तब देखने को मिला जब एक बेटी ने बेटे का फर्ज निभाते हुए अपनी मां की चिता के मुखाग्नि देने का काम किया देखें हमारे ब्लाग में तू बेटियों की है सरताज-सबको तुझ पर है नाज
'इस बेटी को आने दो'
बहुत मार्मिक और प्रभावी।
अच्छी रचना ,
भाव bhi अच्छे हैं .
सन्देश भी नेक है.
कविता में जाहिर आप की चिंता भी सही है.
Mohanji,
Isee ko leke mere "kavita" blog pe ek kavita hai..
Khair,ye kahun, ki "gharkee Lakshmee" aadi visheshan sadiyon se dekhave bharke liye the...bohot kam pariwar hote the/yaa hain, jahan ek "kanya" ke janmpe sahee mayneme khushee manayee jatee hai...yahee dard maine apnee malika..."Ek baar phir Duvidhame" me jatana chaha thaa...lekin, mere jeevenke us satykaa kuchh aurhrr hashr hoke reh gaya..
aapko bade dinose apne blogpe nahee dekha..warna aap," aaj tak yahaan tak" niyamse padhte the..
Aapki har rachnaa sundar hai, isse zyada alfaaz nahee..
shama
अर्थ प्रधान युग की यही तो त्रासदी है, हर चीज़ में नफा-नुकसान तौलता है, परिणाम कन्या-भ्रूण हत्या.
मानवता हमेशा ठगी गई अपनी सहजता के कारण नफे- नुकसान के ठेकेदारों द्वारा. अभी भी वही हो रहा है, भावुक मानवतावादी बहकाए जा रहे हैं, जल में उलझाये जा रहे हैं, पर क्या भ्रूण हत्या रूक सकी, नहीं और न रुकेगी जब तक की भ्रूण हत्या करने वालों तथाकथित पढ़े -लिखों को नफे का गणित मानवतावादी दृष्टिकोण से न समझाया जायेगा.
चन्द्र मोहन गुप्त
मोहन जी बहुत ही खूबसूरत रचना है।
अच्छी कविता-बेहतर कविता
मोहन जी की सुंदर कविता
mohan ji , itni bhaavuk rachana ki , main ab kya kahun ..
bus aankhen nam hai ..
Mohanji,
Ek amantran/binatee leke aayee hun..mere "lalitlekh" is blogpe "maatru diwas" is sheershak tehet kuchh likha hai..zaroor padhen..mujhe aapke maargdarshankaa hamesha intezaar aur qadr rehtee hai..
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