पेड के उपर चढा आदमी
ऊचा दिखाई देता है !
जड मे खडा आदमी
नीचा दिखाई देता है !
आदमी न ऊचा होता है, न नीचा होता है,
न बडा होता है,न छोटा होता है !
आदमी सिर्फ़ आदमी होता है !
पता नहीं इस सिधे, सपाट सत्य को
दुनिया क्यों नहीं जानती ?
और अगर जानती है,
तो मन से क्यों नहीं मानती ?
किसी संत कवि ने कहा है की
मनुष्य के उपर कोइ नहीं होता,
मुझे लगता है कि मनुष्य के उपर उसका मन होता है !
छोटे मन से कोइ बडा नहीं होता,
टुटे मन से कोइ खडा नहीं होता !
आदमी की पहचान,
उसके धन या आसन से नहीं होती,
उसके मन से होती है !
मन की फकीरी पर
कुबेर की संपदा भी रोती है !
-श्री.अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा रचित |
वन्दे मातरम् !!!
6 comments:
बहुत आभार अटल बिहारी जी की रचना पढ़वाने का.
आदरणीय अटल जी की इस सुन्दर रचना से परिचय कराने का आभार
regards
अटल बिहारी जी की रचना पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
अटल जी की रचनाओं में अलग ही मज़ा है ... आभार पढ़वाने का ...
Bahut Badiya, lage raho munnabhai
पहली बार आया हूँ
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा
लिंक सहेज लिया है
प्रणाम
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