आज तुम उदास हो
मैं भी उदास हूँ
सारा जहाँ उदास है
इस उदासी को दूर कर दो
अपनी एक मुस्कराहट देकर
सूरज निकला
लेकिन
देखकर तुम्हारी उदासी का आलम
वों दमकना भूल गया
भूल गया की उसे
करना है रोशन जहाँ को
पर कर न सका रोशन
देखकर तुम्हारी उदासी का आलम
बादल आये
घन घोर घटायें लाये
पर बरस न सके
देखकर तुम्हारी उदासी का आलम
बरसना ही भूल गए
एक रहम तुम
जहाँ पर कर दो
करने दो रोशन जहाँ को
बरसने दो बादलों को
तोड़कर तुम अपनी
उदासी का आलम
8 comments:
इतनी खूबसूरत कविता पढकर उनकी ,आपकी ,इस जहाँ की उदासी का आलम ज़रूर दूर होगा.
अच्छी भावाभिव्यक्ति की है.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
आपकी रचना बहुत ही शानदार है.
क्या बात है! शानदार रचना
खूबसूरत!
kya baat bahut khoob mohan. ek share apke liye
मुद्दत बीत गई उनको देखे हुए
शब्दों ने आज उनका अक्स घड़ा है।
दिल ने चाहा आंखों में समा लूं
आंसूओं ने सिर इल्ज़ाम धरा है।
अति सुन्दर...भावपूर्ण रचना...
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा रचना लिखा है आपने! बधाई!
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