एक लड़का और एक लड़की..
एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे |
लड़के की मौत के बाद,
उसने लड़की को याद करते हुए कहा..
"एक वादा था तेरा, हर वादे के पीछे..
तुम मिलोगी मुझे हर दरवाजे के पीछे..!
पर तुम मुझसे दगा कर गई..
एक तुम ही न थी मेरे जनाजे के पीछे..!"
पीछेसे एक आवाज आई..
तब लडकेने मुडके देखा, तो वही लड़की खड़ी थी |
लड़कीने कहा..
"एक वादा था मेरा, हर वादे के पीछे..!
मैं मिलूंगी तुम्हे हर दरवाजे के पीछे..!
पर तुमने मुडकर नहीं देखा..
एक और जनाजा निकला था, तेरे जनाजे के पीछे..!"
प्रिय साथियों कुछ दिन पहले मुझे मेरे एक दोस्त ने दिल्ली से एक मेल भेजी जिस में ये कुछ लाईनों की रचना थी पढा तो दिल को छू गई। आज दोबारा से पढा तो सोचा क्यों ना अपने बलाग की शोभा बनाई जाए। यहां पर मैं यह भी बता दूं कि यह रचना मैंने नहीं लिखी है। लेकिन इसके लेखक का नाम भी मुझे नहीं पता है हां यह पता है कि इसे भेजने वाला दोस्त दिल्ली में हैं। तो इस पर किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए। अगर किसी को कोई ऐतराज हो तो मुझे बता सकता है। उसके बाद मैं इसे डिलीट कर दूंगा या महान ब्लागर्स जो भी राय देंगे वह मैं मानूंगा लेकिन मेरा किसी की भी पोस्ट को चोरी करने का कोई इरादा नहीं है इसलिए पढें और बताएं कि क्या ये गलत तो नहीं है
23 comments:
वाकई दम है।
बहुत बहुत शुक्रिया मोहन जी आपके ख़ूबसूरत टिपण्णी के लिए! सच कहूँ तो आप इतना सुंदर से टिपण्णी देते हैं की लिखने का उत्साह और बढ जाता है और ये कोशिश रहती है अच्छा से अच्छा लिखूं!
मुझे आपके नए पोस्ट का रोज़ इंतज़ार रहता है! सच में आपने बहुत खूब लिखा है आख़िर प्यार हो तो ऐसा वरना नहीं! बहुत दम है! लिखते रहिये!
इ मेल से पहले मैने भी पढ़ा है... फिर पढ़ कर मजा आया..
अच्छा है
पर तुमने मुडकर नहीं देखा..
एक और जनाजा निकला था, तेरे जनाजे के पीछे..!"
वाकई बहुत सुंदर .
bahut hi marmik
अच्छा लिखा है।
वाह क्या बात है।
ह्रदय को छू .गयी उन दोनों का यह प्यार भरा सफ़र
गोया की वो एक खास किस्म के शेरो वाला प्यार है .
वाहवा........... ये भी खूब रही..
फिर से एक बार पढ़कर अच्छा लगा
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
एक और जनाजा निकला था, तेरे जनाजे के पीछे..!"
ऐसे मौके पर बधाई तो दे नहीं सकता,
सान्तवना से ही संतोष करें ........................
चन्द्र मोहन गुप्त
mohan bhai , jisne bhhi likha ho aapne to pesh kar diya hai na , main to teeno ko badhai deta hoon. jis bande ne likha unhe , aapke dost ko aur aapko bhi ...
dil se badhai sweekar karen ..
bahut hi marmik rachnaa hai ..pahle bhi kahin suni padhi lagti hai..aisee rachnaon ka koi davedaar nahin hota ye na jane kaise circulate hoti rahti hain..
lekin jo bhi yah serial shuru karta hai usey kavi/rachnakaar ka naam bhi dena chaheeye..
Mohan ji ,aap ne disclaimer de diya hai..kisi ko koi objection hoga to bata hi dega.
सही कहा आपने, प्यार हो तो ऐसा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
एक और जनाजा निकला था, तेरे जनाजे के पीछे..!"
इस अंतिम पंक्ति में संपूर्ण कविता की जान है .....!!
sir mujhe hindi type to nhi aati but ye janaja was superub
hello vashisth ji where are you now these days
when you find this comment then call me on-9015416644.i will wait your call
मोहन जी,
क्या बात है बहुत दिनों से दिख नहीं रहे हैं?
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मोहन जी,
बड़े दिनों बाद मैं खुद आपके ब्लॉग पर आ पाया, क्षमा चाहूंगा।
आपका फेसबुक आमंत्रण स्वीकार कर आपका दोस्त हो ही चुका हूँ।
आपकी साफ़गोई बहुत पसंद आती है, मुझे।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
"ek aur janazaa nikalaa thaa, tere janaze ke peechhe.."
Uff ! Is shiddat ke saath bhee koyi kisee koyi kiseeko chaah sakta hai...
Really excellent..It was really true love..I liked it..Congrats..
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