जब भी मैं सोचता हूं अपने बारे में
कि मैं क्या हूं
अंदर झांकता हूं
तो पाता हूं
कुछ भी नहीं मैं
कभी सोचता हूं कि
किसी कवि की लिखी
किसी कविता के
शब्द में लगी मात्रा की आवाज का
सौंवा भाग भी नहीं हूं
कभी सोचता हूं कि
धरा पर लगे वृक्षों के पत्ते पर पडी
ओस की बूंद का
सौवां भाग भी नहीं हूं
कभी सोचता हूं कि
रिमझिम गिरती बारिश की एक बूंद
जो बादलों से गिरकर बिखर गई
उसके छोटे से भाग के समान भी नहीं हूं
तब मैं सोचता हूं कि
लोग क्यों कहते हैं कि
तुम ये हो तुम वो हो
क्या लोग सही हैं
यदि हैं तो मुझे क्यों नहीं दिखता
क्यों नहीं महसूस होता
क्यों नहीं सोच पाता कि
हां मैं हूं
मैं हूं बहुत कुछ
23 comments:
आपकी यह कविता अच्छी लगी। अत्मानुसंधान से ही कविता निखरती हैं। लिखते रहिये। आशा है आप बेहद संभावनाओं से युक्त कवि हो पायेंगे।-
सुशील कुमार
मोहन जी बहुत ही सुंदर लगी आप की यह कविता, बहुत कुछ कह रही है.
धन्यवाद
rachna ne nishabad kar diya...kya comment kiya jae
main hun bahut kuch,waah khud ki talash yahi khatam hoti hai tab,sunderbhav sunder rachana
बहुत उम्दा रचना.
रामराम.
अस्तित्वबोध के लिए आत्मबोध अनिवार्य है, ऐसी कविता ही आज के समय की सही तस्वीर पेश करती है, साथ ही ऐसा लगता है हम एक तरफ ब्रह्मांड की विराटता का अन्वेषण कर रहे हैं, दूसरी तरफ अपने अस्तित्व की छुद्रताओं से ग्रसित भी होते जा रहे हैं, आपकी यह कविता इस बोध से निजात भी दिलाती है। (पर मेरी कविता में यह निजात नहीं है।)
हां मैं हूं
मैं हूं बहुत कुछ.........
यही सही है ,
आपने देकार्त की उक्ति सुनी होगी कि- i think- i am .अच्छी रचना .
बहुत उम्दा... सुंदर कविता
अगर व्यक्ति खुद अपनी कद्र करने लगे तभी दुसरे उसकी कद्र करना शुरू कर देंगे
आदमी के लिए सोचना जरूरी है. अच्छी रचना.
सुन्दर ..उम्दा प्रस्तुति.
अरे मोहन भाई
हीरा कब जान पाया है कि वो हीरा है. वो तो खुअ को पत्थर माने पड़ा रहता है और जोहरी आंक लेता है.
-बहुत खूब रचना कही.
अपनी तलाश अपनी पहचान तो सारी उम्र जारी रहती है...... और इंसान कभी भी to संतुष्ट नहीं होता......और ये तलाश जारी ही रहे तो अच्छा है कम से कम इस कोशिश मे hm बहुत कुछ करते चले जाते हैं.....सुंदर भावः और अभिव्यक्ति....
Regards
यह कविता आप ने बहुत ही अच्छी लिखी है.
'किसी कवि की लिखी
किसी कविता के
शब्द में लगी मात्रा की आवाज का
सौंवा भाग भी नहीं हूं'
अपनी तलाश में आप ने उपमान अच्छे तलाशे हैं..
भाव अभिव्यक्ति अच्छी लगी..
[आप के ब्लॉग पेज पर आप की कविता नज़र नहीं आती..सिर्फ काला पन्ना और गिरती बर्फ..
पेज की फीड पर जा कर पढ़ती हूँ .]
बहुत ही सुन्दर रचना लिखी है।
बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना .सुन्दर बात कही आपने
मुझे पसंद आयी
अपने बारे में कहना सुंदर मुश्किल है।
-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
ख़ूब शब्दों में पिरो लिया आपने ख़ुद को!
मोहन जी, ब्लॉग पर लिखना थोड़ा धीमा इसलिए हो गया कि कुछ और भी ज़रूरी काम हैं जिनको निपटाना रहता है!
Charchaa | चर्चा इस साइट के निर्माण का भार आजकल मुझप है!
Mohan ji bahut hi achha raha ye safar khud ko pehchan ne ka...
kya aur kin shabdon mein tarif karun aapki aur aapki gahan soch ki.jis main ko maine kai baar likha magar hamesha adhura hi raha lagta hai aapne to use poora hi pakad liya.
bahut hi nayab likha hai aur bahut hi gahri soch ke sath.
kya aur kin shabdon mein tarif karun aapki aur aapki gahan soch ki.jis main ko maine kai baar likha magar hamesha adhura hi raha lagta hai aapne to use poora hi pakad liya.
bahut hi nayab likha hai aur bahut hi gahri soch ke sath.
बहुत बहुत शुक्रिया आपके ख़ूबसूरत कमेन्ट के लिए!
मुझे आपकी ये रचना इतनी पसंद आई कि मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती!
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