Saturday, 12 June 2010

आंगन में पंछी आए ख्वाब सजाने को

आंगन में पंछी आए ख्वाब सजाने को
आँखों में सपने लाये ,कुछ कर दिखाने को
कुछ सपने पीछे छूटे पलकों पे आंसू बनके
कुछ अपने पीछे छूटे पलकों पे आंसू बनके
कुछ ख्वाब झांकते हैं आँखों में मोती बनके
कुछ वादे अपनों के हैं ,कुछ वादे अपने से
कल दुनिया महकेगी फूल जो आज खिलने को हैं ....2
खिलने दो रंगों को फूलों को अपने संग
महकेगी दुनिया सारी ,बहकेगी अपने संग
ख्वाबों के परवाजो से आसमान झुकाने को है........2
आंगन में पंछी आए ख्वाब सजाने को
आँखों में सपने लाये ,कुछ कर दिखाने को
क़दमों की आहट अपनी दुनिया हिला देगी
यारों की यारी अपनी हर मुश्किल भुला देगी
यह रचना आदरणीय दिव्या प्रकाश दुबे जी की है जिसको मैंने उनके ब्लॉग  से लिया है


दिव्य प्रकाश दुबे
Divya Prakash Dubey

6 comments:

दिलीप said...

bahut sundar

पवन धीमान said...

सुंदर।

पवन धीमान said...

सुंदर।

Udan Tashtari said...

अरे वाह, दिव्य प्रकाश जी की रचना और ले आये आप..मेरे प्रिय रचनाकार हैं.

Urmi said...

बहुत सुन्दर लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!

पंकज मिश्रा said...

अरे वाह। लाजवाब। क्या कहने। दिव्य जी की कुछ और रचनाएं डालिए। क्या कहने भई वाह। शानदार।