रास्ते में ही छोड़कर उन्हे जाने कि आदत है
वो मेरे हर झूठ से खुश होती,
जिसे हमेशा सच बोलने की आदत थी,
वो एक आंसू भी गिरने पर खफा होती थी,
जिसे तन्हाई में रोने की आदत थी,
वो कहती थी की मुझे भूल जाओगे,
जिसे मेरी हर बात याद रखने की आदत थी,
हमेशा माफ़ी मांगने के बहाने से,
रोज़ गलतियाँ करना उसकी आदत थी,
वो जो दिल जान न्योछावर करती थी मुझ पर,
मगर छोटी सी बात पर रूठना उसकी आदत थी,
हम उसके साथ चल दिए पर ये नहीं जानते थे,
की रास्ते में ही छोड़कर उन्हे जाने कि आदत है,,
लोग कहते हैं ज़मीं पर किसी को खुदा नहीं मिलता
शायद उन लोगों को दोस्त कोई तुम-सा नहीं मिलता
किस्मतवालों को ही मिलती है पनाह कीसी के दिल में
यूं हर शख़्स को तो जन्नत का पता नहीं मिलता
अपने सायें से भी ज़यादा यकीं है मुझे तुम पर
अंधेरों में तुम तो मिल जाते हो, साया नहीं मिलता
इस बेवफ़ा ज़िन्दगी से शायद मुझे इतनी मोहब्बत ना होती
अगर इस ज़िंदगी में दोस्त कोई तुम जैसा नहीं मिलता
ऑरकुट से साभार
8 comments:
बहुत ख़ूब...
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक...
कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी
शानदार कविता बधाई आप हमारे इस लिंक पर भी आईये गा
शेखर कुमावत
http://guftgun.blogspot.com
bas yahi to hai pyaar...bahut sundar
ऑर्कुट से सही आईटम लायें हैं..पसंद आया.
बहुत ही सुन्दर, शानदार और मनमोहक रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
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